कृतज्ञ तोते की दिल को छू लेने वाली कहानी
एक बार की बात है जब नारदमुनी सफ़र पर निकले थे, तभी उन्होंने एक सुंदर वन देखा, उस वन की सुंदरता मन मोहनेवाली थी। चारो तरफ हरियाली फैली थी, पेडो पर फूल और फल लगे हुए थे।
वहां हर पेड़-फूल मन को लुभानेवाला नजारा था। तभी अचानक नारदमुनी की नजर एक तोते पर पडी। वो तोता एक सूखे पेड पर उदास एवं नाराज बैठा था।
नारदमुनी सोचने लगे कि यंहा इतनी हरियाली है, यहाँ पेड-पौधे हरियाली फल और फूल से भरपूर है, फिर यह भी तोता एक सूखे पेड पर गुमसुम क्यों बैठा है? ये देखकर नारदमुनी को आश्चर्य हुआ, उन्होंने उस तोते से पूछा कि यहाँ इतने हरे-भरे पेड़-पौधे फल-फूलो से लगे है, फिर भी तुम सूखे पेड पर क्यों बैठे हो। सभी पक्षी अपना जीवन आंनद से व्यतीत कर रहे है और तुम इसे छोड़कर इस सूखे पेड पर क्यों बैठे हो?
तोते ने कहाँ नारदमुनी जी कुछ दिनों पहले ये पेड़ भी हरा-भरा फूलो-फलो से संपन्न था। इस पेड़ ने मुझे मीठे-मीठे फल खिलाए, आसमान की तपती धुप से छाव दी। बारिस के पाणी से मेरी रक्षा की। इसने मुझे बरसो तक आश्रय दिया और हर आंधी तूफान से मेरी रक्षा की, अब आप ही बताए मै अपने आश्रदाता को कैसे भूल जाऊ।
तोते की यह बात नारदमुनी के दिल को छू गई। तोते का पेड़ के प्रति इतना स्नेह देखकर नारदमुनी बोले.. तुम्हारा इस पेड़ के प्रति यह स्नेह एवं तुम्हारी कृतज्ञता को देखकर मै बहुत प्रसन्न हुआ और यह कहकर नारदमुनी ने उस पेड़ को फिर से हरा-भरा कर दिया।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि भलाई करने वालो का कभी उपकार भुलना नही चाहिए, जब एक तोता इतना कृतज्ञ है, हम तो इंसान है। एक कहावत है, अगर भला चाहते हो, तो भला करो। तोते के इस कृतज्ञता ने साबित कर दिया कि अगर हम किसी का भला करते है हमारा भी भला होता है, इसलिए हमें तोते की तरह कृतज्ञ होना चाहिए।
ये आर्टिकल भी जरुर पढ़े