लालची भाई और उसकी पत्नी की कहानी
एक गाँव में ‘राज’ और ‘धनराज’ नाम के दो भाई रहते थे। वे दोनों अलग-अलग माताओं के बेटे थे। उसी तरह दोनों का स्वभाव भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग था। छोटा भाई बहुत ही शांत स्वभाव का था और बड़ा भाई गुसैल और लालची था। बड़े भाई (राज) ने धोखे से अपने पिता की जायदाद अपने नाम कर ली थी।
उसने अपने पिता से कहा था कि पिताजी आपकी हालत बहुत ही गंभीर है, कभी भी, कुछ भी हो सकता है। मै बडा हूँ इसलिए आप पुरी जायजाद मेरे नाम कर दिजीये। जब धनराज की शादी होगी, तब मैं आधी जायजाद उसके नाम कर दूंगा। उसके पिता का उस पर पुरा भरोसा था कि राज कभी किसी से धोका नही करेगा। इसलिये उसके पिताजी ने अपनी पुरी जायदाद राज के नाम पर दिया था।
राज की पत्नी बहुत ही लालची थी। वह अपनी मीठी मीठी बातो से खेतो का पूरा काम धनराज के हातो से करा लेती थी। फिर कुछ दिनो बाद राज-धनराज के पिताजी की मुत्यू हो गई है। उसके बाद राज की पत्नी धनराज से झगडे करने के बहाने खोजती रहती थी। धनराज अपने बड़े भाई राज और उसकी पत्नी से बहुत परेशान हो गया था।
एक दिन उन दोनो से तंग आकर धनराज ने अलग होने का फैसला लिया और अपने बड़े भाई से आधी जायदाद मांगी। तब राज ने कहा, कि कौन सी जायदाद.. पिताजी ने जायदाद पर बहुत सारा कर्जा लिया था। मैने अपने वर्षो से कमाए हुए पैसे से उनका पूरा कर्जा भरा है। अब वो पूरी जायदाद मेरी है, तेरा इसमें कुछ भी नहीं है।
यह सुनते ही धनराज के आँखों में आंसू आ जाते है और वो रोते हुए वहां से दुसरे गाव चला जाता है। उसे उस गाव में एक बहुत अच्छा जमींदार मिलता है। जमींदार धनराज को अपने घर में खेती का काम देता है। धनराज की इमानदारी और खुद्दारी को देखकर जमीनदार की बेटी उसे पसंद करने लगती है। वो यह बात अपने पिताजी से कहती है, जमींदार भी धनराज को बेहद पसंद करता है।
तब जमींदार धनराज से अपनी बेटी की शादी कर देता है। दुसरे दिन जमींदार धनराज से कहता है कि.. बेटा मेरा कोई वारिस नही है। इसलिए मै अपनी पुरी जायदाद और अपनी बेटी तुम्हे दे रहा हुं, इसे अब तुम्हे ही संभालना है।
धनराज कहता है.. नहीं ससुर जी.. मै मेहनत से कमाने वाला इंसान हुं। इसलिए मै ये जायदाद नही ले सकता। जमींदार कहता है.. मैने पिछले जन्म में कोई पुण्य किया होंगा, जो मुझे इतना अच्छा जमाई मिला है।
उसके बाद धनराज एक दिन खेतों में काम करके खाना खाने के लिए एक पेड के नीचे बैठा था। उतने में भगवान एक भिकारी के रूप में आकर उसे कहते है.. हे भाई मै बहुत दिनो से भुका हुं, कुछ खाने को मिलेगा क्या? धनराज उसे अपना पुरा खाना दे देता है। तभी अचानक भगवान भिकारी के रूप से बाहर आते है और कहते है.. मै तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और तुम अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हो।
इसलिए मै तुमको एक बासुरी देता हूँ, जिसे बजाकर तुम जो भी मागोगे, वो तुम्हे मिल जाएगा। पर इसका गलत इस्तेमाल करने पर तुम्हे जो चीजे मिलेगी, वो सब गायब हो जाएगी। धनराज घर जाते ही यह सब बातें अपनी पत्नी को बताता है।
फिर वो कुछ ही दिनो में धनवान हो जाता है. धनराज अपने गाव जाकर अपने भाई के घर के सामने एक बहुत ही बडा घर बनाता है। उसका बड़ा भाई राज सोचता है कि धनराज इतनी जल्दी इतना धनवान कैसे बन गया?
फिर एक दिन राज आता है और धनराज से कहता है.. वाह भाई, तुम तो बहुत जल्दी धनवान हो गये हो। तब धनराज कहता है, सब भगवान की कृपा है।
लेकिन राज उसे बार बार पूछता है तब धनराज उसे पूरी कहानी बता देता है कि एक दिन मै खेतो में काम करके खाना खाने के लिये एक पेड़ के नीचे बैठा, उतने में एक आदमी आया और मुझसे खाना मागने लगा. तब मैने उसे पुरा खाना दे दिया. फिर अचानक उसने भगवान का रूप ले लिया. उसने मुझे एक बासुरी दी है और कहा कि तुम इसे बजाकर जो भी मागोगे, वो तुम्हे मिल जाएगा।
यह सुनकर राज बहुत खुश हो जाता है और अपने घर जाकर वो यह बात अपनी पत्नी को बताता है। तब वो उसे उस पेड़ के नीचे खाना लेकर जाने के लिए कहती है। उसके बाद वह खाना लेकर उस पेड के पास पहुच जाता है। कुछ ही देर में वहां एक भिकारी आता है और उसे कहता है कि.. हे भाई मै बहुत दिनो से भुका हुं, कुछ खाने के लिए दे दो। तब राज को लगता है कि धनराज ने तो आदमी बताया था, ये तो भिकारी है।
तब राज उसे कहता है कि.. तुम बहुत दिनो से भुके हो तो मै क्या करूँ.. यह कहकर वह उसे भगा देता है। फिर पेड के नीचे बैठे-बैठे उसे नींद लग जाती है। उसके बाद पेड पर से एक आम उसके सिर पर गिरता है और उसकी नींद खुल जाती है। फिर वो खाने का डिब्बा पकड़ता है, तो वो उसे हल्का महसूस होता है। फिर वो उसे खोलकर देखता है तो वो डब्बा पूरा खाली रहता है।
फिर अचानक पेड पर से एक बासुरी उसके सामने गिरती है और वो उस बासुरी को घर लेकर आता है। इस बारे में वो अपनी पत्नी को भी बताता है और वह दोनों बहुत खुश हो जाते है। उसके बाद वे तरह तरह के सपने देखते है कि हम ऐसा करेंगे, हम वैसा करेंगे, हम लक्षण से भी बड़ा घर बनायेंगे, आदि।
फिर दुसरे दिन सुबह जब राज वो बासुरी बजाता है तो उस बासुरी में से एक बहुत बड़ा जीन बाहर आता है। तब राज और उसकी पत्नी उसके सामने मुझे ये चाहिए, मुझे वो चाहिए, ऐसे तरह तरह के अपनी ख्वाइसे रखते है। जीन बोलता है.. तुम लोग मुझे आर्डर दे रहे हो, मै तुम्हारा गुलाम हूँ क्या?
उसके बाद वह राज और उसकी पत्नी को आर्डर पे आर्डर देकर उनसे दिन भर काम करवाते रहता है। अगर वह काम नहीं करते है तो वह उनकी पिटाई शुरू कर देता है। वह जीन उन दोनों को अपना गुलाम बना लेता है, वो जैसा बोलता है, ये दोनों वैसे करते है।
इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि लालच बुरी बला है, जो लोग लालची और दूसरों के बारे में बुरा सोचने वाले होते है, उनके साथ अंत में बहुत बुरा ही होता है।
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