डाकुं, वृद्ध बाबा और घोड़े की कहानी
इस कहानी में तीन पात्र है। दो आदमी और एक घोड़ा। यह घोड़ा दो पुरुषों के बीच द्वंद्ववाद निर्माण करता है। इस कहानी में एक तरफ डाकू जामवल सिंह है और दूसरी तरफ एक वृद्ध बाबा अम्बरलाल और इन दोनों के बीच घोडा जिसका नाम पवन है। जो बाबा और डाकू के बीच द्वंदवाद की लकीरे बना देता है।
‘पवन घोडा’ बाबा अम्बरलाल को अत्यंत प्रिय होता है। बाबा के भक्ति भजन से जो भी समय बचता है वह घोड़े को अर्पण करता है। घोड़े से बाबा को इतना लगाव था कि वे अपना अधिकाँश समय उसी के आसपास बिताते है। बाबा अंबरलाल घोड़े से इतना प्रेम करते थे कि बाबा और घोड़े की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई थी।
घोड़े की यह चर्चा धीरे धीरे काफी प्रसिद्द हुई। यह बात डाकू जामवल सिंह को पता चली। इसलिए उसके मन मे उस घोड़े को देखने इच्छा उत्पन्न हुई। तब वह बाबा अम्बरलाल के घर पंहुच गया। डाकू को अपनी ओर आता देख बाबा अम्बरलाल थोड़े घबरा गए।
डाकू जामवल सिंह बाबा अम्बरलाल के सामने घोड़े को देखने की इच्छा प्रकट करता है। यह सुनकर बाबा को तसल्ली होती है कि वह उसे कुछ नहीं करेगा। तब बाबा अम्बरलाल अपने घोड़े पवन की खूबियों को विस्तार से बताते है, उसके बाद घोड़े को दिखाने के लिए बाबा डाकू जामवल सिंह को अपने अस्तबल मे लेकर जाते है।
घोड़े को देखते ही डाकू जामवल सिंह को उसकी सवारी करने की इच्छा होती है और वह बाबा से घोड़े की सवारी करने की अच्छा प्रकट करता है। बाबा ख़ुशी से वह घोडा जामवल सिंह को सवारी के लिए दे देते है।
डाकू जामवल सिंह घोड़े की सवारी करके वापस आता है और बाबा को बताता है कि मै यह घोडा एक दिन लेकर जाऊँगा। यह घोडा मुझे बहुत पसंद आ गया है, ऐसा कहकर डाकू वहां से चला जाता है।
इस बात को सुनकर बाबा बहुत दुखी हो जाते है, अब बाबा को रात में भी नींद नहीं आती है। उन्हें हर समय यह भय लगा रहता है कि कही से डाकू जामवल सिंह ना आ जाये और उसके घोड़े को न लेकर चला जाए।
लेकिन जब कई दिनों तक डाकू नहीं आता है तो बाबा इस भय से निश्चिन्त हो जाते है और वह आराम से अपनी जिंदगी बिता रहे होते है। लेकिन एक दिन डाकू जामवल सिंह भेस बदलकर अपाहिज के रूप मे आता है बाबा को घोडा मांगता है।
तब बाबा उसे मदद हेतु घोडा दे देते है। परन्तु उन्हें धोका मिलता है। उस समय डाकू जाते-जाते बाबा से कहता है कि बाबा मैंने आपसे कहा था ना की मै यह घोड़ा एक दिन लेकर चला जाऊंगा। ऐसा कहकर डाकू वहां से निकलने लगता है।
तब बाबा बहुत ही दुखी होकर डाकू से कहते है कि, जामवल सिंह अब इस घटना को सुनकर कोई भी दीन-दुखियों की सेवा करने आगे नहीं आएगा। मैंने तुम्हे अपाहिज समजकर तुम्हारी मदद हेतु घोडा दे दिया, लेकिन मुझे बहुत बड़ा धोका मिला।
मुझे इस बात का जरा भी दुःख नहीं की तुम मेरा सबसे प्रिय घोडा लेकर जा रहे हो, मुझे दुःख इस बात का है कि इस घटना के बाद कोई भी दीन-दुखियों की सेवा करने आगे नहीं आएगा, अब के बाद कोई उन विश्वास नहीं करेगा।
तब इन बातो को सुनकर डाकू वहां से चला तो जाता है, लेकिन बाबा अम्बरलाल के वह शब्द डाकू के कान मे बार-बार गूंजते रहते है। घर आकर डाकू जामवल सिंह यह सोचने लगता है कि बाबा के कितने महान और उच्च विचार हैं, उन्हें इस घोड़े से कितना प्रेम है।
इसकी रखवाली के लिए बाबा अम्बरलाल कई रात सोये नहीं. लेकिन आज उनके मुख पर घोड़े को लेकर दुख की एक रेखा तक नहीं थी। उन्हें तो केवल यह ख़याल था कि कही लोग दीन-दुखियों, अपाहिजों की मदद और उन पर विश्वास करना न छोड़ दे।
इतने महान विचारो वाले व्यक्ति से मैंने दगाबाजी की, यह सोचकर डाकू जमवाल सिंह को अपनी गलती का एहसास होता है। फिर वह घोड़ा लेकर बाबा अंबरलाल के अस्तबल में जाता है और उसे वहीं बांध देता है। उसके बाद, वह अपनी गलती के लिए बाबा से माफी माँगता है।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कुछ सकारात्मक बातें बड़े-बड़े डाकुओं का भी मन परिवर्तन कर सकती हैं। कुछ सकारात्मक बातें और सकारात्मक विचार व्यक्ति को गलत रास्ते पर चलने से रोक सकते हैं, उन्हें सही दिशा दिखा सकते हैं।
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