हिरन और शिकारी की दर्द भरी कहानी

वसुंधरा नगरी का एक राजा था। एक युध्द के दौरान राजा को सिंहासत में ये नगरी मिली थी। राजा की पांच रानियां थीं, लेकिन राजा उनमें से बड़ी रानी से ज्यादा प्रेम करता था। बड़ी रानी का नाम वसुंधरा था, इसलिए राजा ने अपनी प्रिय रानी के नाम पर उस नगरी का नाम वसुंधरा रखा था।

राजा वसुंधरा रानी की सभी ख्वाईसे पूरा करता था। वसुंधरा रानी को अलग-अलग व्यंजन खाना बहुत पसंद था। रानी खाने के मामले में बहुत ही लालची थी। रानी की एक दासी भी थी, जो रानी के मायके से आयी थी। रानी की दासी बहुत चालाक थी।
हिरन और शिकारी की दर्द भरी कहानी
हिरन और शिकारी की दर्द भरी कहानी

एक दिन राजा दुसरे राज्य में छान बिन करने गये थे और रानी अपनी दासी के साथ बगिचे में टहेल रही थी। कुछ समय के बाद रानी को हिरन का झुंड उस बाग़ में आते दिखा, रानी को उस झुंड मे से एक हिरन बहुत पसंद आ गई। उस हिरन को देखकर रानी के मुह में पानी आ गया।

उसके बाद रानी हिरन को पकडने के लिए दौडी, तो हिरन छलाग लगाकर भाग गई और रानी नाराज होकर महल में चली गई। फिर दुसरे दिन दासी ने रानी से कहा.. महारानी.. कहते है हिरन का मास बड़ा ही स्वादिष्ट लगता है, एक बार जो खाएगा वो बार-बार खाता रहेगा।

रानी बोली.. अच्छा इतना स्वादिष्ट होता है हिरन का मास.. तो फिर ठीक है, आज महाराज को हिरन पकडने के लिए कहती हूँ। तब रानी दासी को राजा के पास भेजती है, दासी, रानी की हिरन खाने की ख्वाहिश राजा को बताती है।

राजा फौरन प्रधान को बुलाता है और कहता है.. प्रधान हमारे नगर के किसी एक उत्तम शिकारी को बुलाओ, उसके बाद प्रधान शिकारी को बुलाता है। शिकारी राजमहल में उपस्थित होता है और कहता है.. बताईये महाराज क्या हुकुम है? राजा कहता है.. शिकारी हमारी रानी को हिरन का मास खाना है, रानी जिस हिरन को लाने के लिए कहेगी तुम उस हिरन का शिकार करके लाओ।

जो हिरन रानी को पसंद आई थी, उस हिरन के बारे में रानी ने शिकारी को बताया और कहां कि.. देखो शिकारी, मुझे वही हिरन चाहिए। उसके बाद शिकारी शिकार के लिए निकलता है, तब कुछ समय बाद उसे वो हिरन का झुण्ड और वो हिरन दिखाई देती है, जिसके बारे में रानी ने बताया था। उसके बाद शिकारी उस हिरन के पीछे दौड़ता है पर हिरन छलांग लगाकर वहा से भाग जाती है।

फिर दुसरे दिन शिकारी नदी के किनारे उस हिरन को पानी पीते हुए देखता है और उसके अगले दिन शिकारी नदी के किनारे एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ कर हिरन का इंतजार करता है। उतने में ही वह हिरन पानी पीने आती है, तब शिकारी हिरन पर तीर चलाता है, लेकिन चुक जाता है, हिरन सतर्क हो जाती है और भागने लगती है तब शिकारी कहता है.. रुक जाओ, तुम मेरे हाथ से बच नहीं पाओगे।

हिरन कहती है.. हे शिकारी मुझे छोड़ दो, मुझे मेरे बच्चे को दूध पिलाने जाना है और मेरा पति भी बीमार है उसका भी मुझे ही ध्यान रखना है। शिकारी बोलता है.. नही, तुम मुझे अपनी मीठी-मीठी बातो में फसा नही सकती।

हिरन बोली.. हे शिकारी मुझे एक बार अपने बच्चे और पति से मिलने दो, फिर मै तुमारे साथ चलुगी। शिकारी हिरन के साथ जाता है, हिरन गुफा में जाकर बच्चे को देखकर कहती है, एक बार तुझे अच्छे से देखलू मेरे लाल.. बच्चा बोलता है क्या हुआ माँ, क्या बात है, आप ऐसे क्यू बोल रही हो।

हिरन अपने पति से कहती है, आप भी जल्दी ठीक हो जाओं, आपको हमारे बच्चे का ख्याल रखना है। उसका पति कहता है.. क्या हुआ, तुम ऐसे क्यू कह रही हो। तब हिरन अपने पति को रोते हुए सब कुछ बताती है, तब उसका पति कहता है, तो क्या हुआ, हम यहाँ से दूसरी जगह पर चले जाएगे।

पर हिरन कहती है.. नही, मै शिकारी को वादा करके आयी हु, मै अपना वादा नही तोड सकती। यह कहकर हिरन जाने लगती है, उसका पति कहता है.. रुको, तुम मत जाओ, मै शिकारी के साथ जाउगा, वैसे भी मेरी हालत इतनी अच्छी नही है कि मै हमारे बच्चे की देखभाल कर सकूँगा, महाराज भी मेरे जैसा बड़ा शिकार देखकर खुश हो जायेंगे।

बच्चा कहता है.. आप दोनों नही जायेंगे, मै जाउगा शिकारी के साथ, माँ आप पिताजी का ख्याल रखना, मै छोटा हु इसलिए महाराज और महारानी को मेरा मास अधिक स्वादिष्ट और खाने में मुलायम लगेगा।

उन तीनो की बाते सुनकर तीनो का एक दुसरे के प्रति स्नेह देखकर शिकारी के आँखों में आसू आ गए, उसे लगता है, मै कितना पापी हु, जो एक परिवार को एक-दुसरे से अलग कर रहा हु, उसे अपने गलती का एहसास हो जाता है।

तब शिकारी हिरन से कहता है.. आप लोग कहीं नहीं जायेंगे, अब मै किसी को एक-दुसरे से अलग नहीं करूँगा। मै महाराज के पास जाकर सब समझा दूंगा, यह कहकर शिकारी वहा से रोते हुए चला जाता है।

उसके बाद शिकारी राजा के पास जाकर कहता है.. महाराज मै आपका काम नही कर सकता, मै अपने शिकारी पद का त्याग कर रहा हु। राजा ने कहा.. क्या हुआ शिकारी तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो और तुम हिरन भी नही लाए।

शिकारी राजा को रोते हुए सब कुछ बताता है और कहता है.. महाराज जैसे हम इंसान आपकी प्रजा है, वैसे ही पशु-पंक्षी भी आपकी प्रजा है, आपका कर्तव्य है की आप अपने प्रजा की रक्षा करे ना की भूक मिटाने के लिए उनका शिकार करे। राजा को अपनी गलती का एहसास हो जाता है, उसके बाद महाराज अपने रानी और दासी को उनके इस लालची बर्ताव के लिए सजा देते है।

 

इस कहानी से क्या सीख मिलती है

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि, जिस तरह मनुष्य का परिवार होता है, उसी तरह पशु-पक्षियों का भी परिवार होता है। यदि हमारे परिवार से किसी भी मृत्यु हो जाती है तो हम पर क्या बीतती है, आप खुद समज सकते है। वैसे अगर हम किसी पशु-पक्षी का शिकार करते है तो उनके परिवार की क्या हालत होती होंगी, इसका अहसास भी हमें होना चाहिए।

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5 thoughts on “हिरन और शिकारी की दर्द भरी कहानी”
  1. Anurang Pande says:

    सही कहा पूजा मैंम, जो लोग शिकार करते है उनके परिवार में से अगर किसी का शिकार हुवा है तब उन्हें पता चलेगा की शिकार करने का नतीजा क्या होता है, हर प्राणी का अपना एक अलग जीवन होता है, पता नहीं लोग इन बातों को कब समजेंगे.

  2. Pratik Gautam says:

    Bahut hi motivational story hai. Mai aaj chikan khana bhi band kar dunga.

  3. Gaytri Kapoor says:

    बहुत ही बढ़िया कहा (पूजा & अनुराग) आप दोनों ने, मनुष्य बहुत ही सेल्फिश हो गया.

  4. Prajwal Bhagat says:

    Ha bhai, Mai bhi aaj se maans khana band kar raha hu.

  5. Payal Rathore says:

    Murgi ko katate wakt kitni tadpati hai bechari, fir bhi kuch log uske emotion ko ignore kar use kat kar kha jate hai. please aisa karna band kar do. kisi ke emotion ke sath na khelo.

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