दानवीर कर्ण के बारे में कुछ रोचक जानकारी (Some interesting information about Danveer Karna)
आज हम इस लेख में महारथी – दानवीर कर्ण के बारे में रोचक बाते जानने वाले है। अविवाहित स्थिति में सूर्य और कुंती को एक पुत्र हुवा था जिसे आज पूरी दुनिया महारथी – दानवीर कर्ण के नाम से जानती है। लोकलज्जा के लिए कुंती ने अपने कर्ण को एक मंजूषा में बंद कर नदी में बहा दिया। वह मंजूषा अधिरथ नामक एक व्यक्ति को मिला, अधिरथ और उसकी पत्नी राधा इनको भी कोई संतान नहीं थी। तब उन्होंने उस बच्चे को अपनाया, उसका पालन पोषण किया।
सूतपुत्र कर्ण का विवाह (Marriage of Sutputra Karna)
अधिरथ और उसकी पत्नी राधा सूत जाती के थे, इसलिए कर्ण को सूतपुत्र कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। कर्ण बहुत ही तेज दिमाग के व्यक्ति और पराक्रमी थे। कर्ण और द्रोपदी एक दूसरे को पसंद भी करते थे लेकिन कर्ण सूतपुत्र होने की वजह से उसका विवाह द्रोपदी से नहीं हो पाया। तब अधिरथ ने कर्ण का विवाह एक सूतपुत्री कर दिया जिसका नाम रुषाली था।
कर्ण की दूसरी पत्नी का नाम सुप्रिया था, लेकिन इसका उल्लेख महाभारत में बहुत ही कम किया गया है। दोनों पत्नियों से कर्ण को नौ पुत्र हुए।
कर्ण की धैर्य व सहनशीलता (Karna Patience and tolerance)
जब गुरु परशुराम के पास कर्ण कुछ ग्रहण कर रहे थे उस पश्च्चात एक दिन परशुराम कर्ण की जांघ पर सिर रखकर सो रहे थे तब अचानक एक विष कीटक कर्ण की जांघ में घुसने लगा और असहनीय पीड़ा होते हुए भी कर्ण इस डर से जरा भी बिना हिले-डुले पीड़ा सहते रहे ताकि गुरु परशुराम नींद ना खुल जाए। इस बात से कर्ण के धैर्य व सहनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कर्ण की दानवीरता (Munificence of Karna)
उदहारण – 1) महाभारत के अनुसार इंद्र अर्जुन के पिता है, इंद्र जानते थी की जब तक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल रहेंगे तब तक उसे कोई पराजित नहीं कर पायेगा इसलिए उन्होंने महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होने से पहले ही अर्जुन को जिताने के उदेश्य से कर्ण से कवच-कुण्डल दान में माँगा तब कर्ण ने निसंकोच अपना कवच-कुण्डल उतार कर इंद्र को दे दिया।
उदहारण – 1) जब माता कुंती को पता चलता है की उनके बेटों की लड़ाई कर्ण के साथ होने वाली है तब वह घबरा जाती है, और वो कर्ण के पास जाती है और उसे उसके जन्म से लेकर उस पल तक की अपनी पूरी कहानी बताती है, उसे गले भी लगाती है, दोनों बहुत रोते भी है। उसके बाद वो कहती है की वो उनके बेटे पांडवों से ना लढे, दुर्योधन का साथ छोड़ दे ऐसा वचन मांगती है। लेकिन कर्ण ने भी उनसे पहले दुर्योधन को सुख – दु:ख में साथ देने वादा किया था इसलिए वो उनके बातो से सहमत नहीं थे लेकिन धर्मपरायण दानवीर कर्ण माता कुंती को भी कैसे खाली हाथ कैसे लौटने देते, इसलिए वो माता कुंती को भी वचन देते है की, अर्जुन के अतिरिक्त वो किसी भी अन्य पांडवो का वध नहीं करेंगे।
कर्ण की दानवीरता के और भी कई सारे किस्से है, जिसे पढ़कर आप भी कहेंगे की, कर्ण जैसा कोई दूसरा दानी नहीं।
कर्ण की मित्रता (Friendship of Karna)
जब दुर्योधन के कर्ण को अंग देश का राजा बनाया और अपने सिर से मुकुट उतार कर कर्ण के सिर में पहना दिया और कहा की, अगर आप मेरी मित्रता स्वीकार करे तो मै अपने आप को बहुत खुसनसीब समजुंगा तब भाव-विभोर कर्ण के आँख में आँसू आ गए। उसी समय कर्ण ने दुर्योधन को वचन दिया की, मै तुम्हारे दु:खों को अपना दुःख और तुम्हारे सुखों को अपना सुख समझूँगा, और इस वचन का उन्होंने पूरी जिंदगी भर पालन किया तथा धर्मपरायण व वचनबद्ध होने के वजह से ही उन्हें अपने प्राण भी त्यांग दिए।
आज भी कर्ण की अच्छाई के बारे में कई बार कहा – सुना जाता है की, कर्ण के जैसा कोई दोस्त नहीं।
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