क्या है वास्तुशास्त्र, आखिर है क्या वास्तु शास्त्र, क्या आप जानते है वास्तु शास्त्र के बारे में, वास्तु शास्त्र का महत्व, आइये जानते है इसके बारे में कुछ विशेष जानकारी.
क्या है वास्तु शास्त्र, क्या आप जानते है वास्तु शास्त्र के बारे में..
क्या है वास्तुशास्त्र – Vaastu Shaastra
वास्तु शास्त्र की रचना हम जिस जगह वास्तव्य करते है उससे संबंधित दिशा से की जाती है. पौराणिक समय से इसे माना जा रहा है. आज भी, जब कोई व्यक्ति अपना नया घर बनाता है, तो वह वास्तु शास्त्र की मदद से इसे बनाने की कोशिश करता है. वास्तु शास्त्र की रचना दिशाओं के माध्यम से की जाती है.
वास्तु शास्त्र की दिशाएँ – Vastu Shastra, Directions
हम दुनिया में चार दिशाओं को अच्छी तरह से जानते हैं. पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण. इन चार दिशाओं के अलावा ईशान्य, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य यह भी दिशाएँ हैं. दिशाओं में हम आकाश और पाताल इन्हें भी शामिल करते है. इस तरह से कुल दिशाएँ दस हो जाती है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा – Eastern direction, Vaastu Shastra
वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा को प्रधान दिशा माना जाता है. इस दिशा के स्वामी इन्द्र देव माने जाते हैं. सूर्य का उगम भी पूर्व दिशा से ही होता है. दरवाजे को पूर्व दिशा में रखने से सुख और समृद्धि का लाभ मिलता है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार पश्चिमी दिशा – Western direction, Vastu Shastra
निर्माणाधीन विषयों में पश्चिम दिशा काफी शुभ होती है. इस दिशा के स्वामी वरुण देव माने जाते हैं. इस दिशा में भारी निर्माण कार्य करना शुभ माना जाता है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा – North direction, Vaastu Shastra
निर्माणाधीन कार्यों में उत्तर दिशा को हमेशा खाली और भार रहित रखना शुभ माना जाता है. इस दिशा के स्वामी कुबेर देव हैं.
वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा – Vastu Shastra, south direction
दक्षिण दिशा निर्माण कार्य के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती है, इस दिशा के स्वामी यमराज होते हैं. ऐसा माना जाता है कि निवास का खुला दरवाजा दक्षिण की ओर नहीं होना चाहिए.
वास्तु शास्त्र के अनुसार ईशान्य दिशा – Northeast direction, Vastu Shastra
ईशान्य दिशा उत्तर और पूर्व के मध्य में आती है. ब्रह्माजी और शिव भगवान को इस दिशा के स्वामी माना जाता है. अधिकांश घर के दरवाजे और खिड़कियां इसी दिशा में होनी चाहिए.
वास्तु शास्त्र के अनुसार आग्नेय दिशा – Vaastu Shastra, the yard direction
आग्नेय दिशा पूर्व और दक्षिण दिशा के मध्य में आती है. अग्नि देवता इस दिशा के स्वामी माने जाते है. अग्नि के अनुसार, हम इस दिशा को शुभ मानते हैं, इसलिए आप इस दिशा में अपनी रसोई बना सकते हैं.
वास्तु शास्त्र के अनुसार नैऋत्य दिशा – Vastu Shastra, the southwest direction
नैऋत्य दिशा दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य में आती है. राहु देव को इस दिशा का स्वामी माना गया है. निर्माणाधीन कार्यों के विषय में इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए.
वास्तु शास्त्र के अनुसार वायव्य दिशा – Vaastu Shastra, the northwest direction
वायव्य दिशा यह उत्तर-पश्चिम दिशा के मध्य में आती है. वायु देव को हम इस दिशा का स्वामी मानते है. इस दिशा में भी आप निर्माण कार्य कर सकते है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार आकाश की दिशा – Vaastu Shastra, the direction of the sky
आकाश की दिशा के स्वामी भगवान शिव जी को माना जाता है. आपके किसी भी आवास क्षेत्र में आपको नैसर्गिक या कृत्रिम छाया मिलती है तो यह काफी शुभ होती है.
वास्तु शास्त्र के अनुसार पाताल की दिशा – Vaastu Shastra, the direction of Halle
वास्तु शास्त्र की जानकारी के अनुसार जमींन में दबी हुई चीजों से भी वास्तु की रचना पर असर हो सकता है. जब भी आप कोई भवन निर्माण करे तो उस जगह में दबी हुई चीजों की जानकारी अवश्य ले.
दोस्तों वास्तु शास्त्र एक ऐसा ज्ञान है, जिससे हम अपने आवास स्थान को अच्छा बना सकते है. पौराणिक समय से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. पहले घडी नहीं हुआ करती थी, तो लोगो को समय की समज नहीं थी. इसीलिए वे अपने घर का दरवाजा या खिडकी पूर्व दिशा की ओर रखते थे ताकि उन्हें सुबह होने का पता चल सके.
पश्चिम दिशा की ओर वे रसोईघर रखते थे, ताकि शाम होने पहले उनका खाना पक जाये. शौचालय भी उनका पश्चिम दिशा की ओर हुआ करता था. छाया के लिए वे अक्सर पेड़ लगाया करते थे.
आज हम जो भी वास्तु शास्त्रों से पढ़ते या सुनतें है, यह सब पुरानी बातों का आधुनिकीकरण है. इंसान ने सभी चीजों में अलग-अलग तरीको से परिवर्तन लाकर वस्तुओं को बदलने की कोशिश की है. तब कहीं हम आज एक अच्छी जिंदगी जी रहे है.
Author: Nevindra
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