देश हमारा जब गुलाम था

देश हमारा जब गुलाम था, सबका यही नारा था. “ना होगा गुलाम कोई, ना होगा बेकार कोई” रहेंगे हम एक डेरे मेंं, भाई और बिचोलोंं मे. रहेगा ना कोई दुश्मन हमारा, जब साथ होगा सबका भाईचारा. बस इसी सोच से हम परिस्थिती को अपनाते चल दिये, अपने तो अपने दुसरोंं को भी समझातें चल दियेंं.

लगने लगे दिन सुहाने, जब अंग्रेजों ने अपने हाथ पीछे डाले. जब बारी आयी स्वातंत्रता की तो दुनिया मे हम अलग ही कह्लाने लगे. क्रांतिकारीयों की पहचान लोग हमारे देश से लेने लगे. पर दोस्तोंं जब समय आया सच्ची स्वतंत्रता का, तो कोई ना सोच सका कि, क्या होगा हमारे देश का. सबका यही सपना था, सारा देश अपना था. अब ना होगा जुल्म अंग्रेजो का, न ही होगा डर किसी का. अब जियेंगे हम आजादी में.

लेकिन परिस्थिती कुछ और ही थी. सारा देश स्वतांत्रता पाकर खुश था. और कुछ नगीने एैसे भी थे जो अंग्रेजी हुकुमत का जुल्म भुलाकर आपस मे ही लडने झगडने लगे. जाती भेदभाव का इतना जुल्म हुआ कि, पाकिस्तान अलग हो गया. गुमनाम हो गया हिंदू मुस्लीम भाई भाई का नारा. 

अंग्रेजी हुकुमत से लडने हमें 200 साल लगे. मगर दोस्तोंं कभी जो लडे एक साथ, समय समय पर दिया एक दुसरे को हाथ, उन्हीं हिंदू मुस्लीम भाई भाई को एक दुसरे से अलग होने 2 दिन भी न लगेंं. आझादी तो पा ली, लेकिन दिल नही मिल पाये और हिंदू मुस्लीम के बटवारेंं हो गए. हिदुस्तान पाकिस्तान अलग हो गया. तब कहाँँ थे गांधी और् जिन्ना, जिन्होंंने परोसी थी देश मे नेकी की नय्या. नय्या तो एैसी पार लगी, कि डूबने तक जगह न मिली. जिन्होंंने कहा था, कि इस देश के टूकडे नही होने देंगे, वे ही अब सहानुभूती की बात करने लगे.

फिर भी दोस्तोंं यह हमारा हिंदुस्तान है, जहॉ हर किस्म के, हर धर्म के लोग अच्छे से और सुरक्षित रहतेंं है. हिंदुस्तान क्रांतिकारी और शहीदों का देश है और आज भी हमारे देश को “सत्य और अहिंसा” का प्रतिक माना जाता है. 

किसी की गुलामी मे रहना और जबरदस्ती का गुलाम बन जाना. यह अलग बात होती है. इन दोनोंं बातों मेंं काफी अंतर है. हम किसी की गुलामी करते है तो उसे दिल से स्वीकारते हुये करते है. लेकिन कोई आप के उपर जबरदस्ती की गुलामी की सजा दे, ये अलग बात है. यह तानाशाह से कम नही है.

आज भी हम हमारी सरकार के गुलाम है. लेकिन इसे हम दिल से स्वीकार करते है. सरकारी नियमों का पालन करना ये हमारी मुलभूत जिम्मेदारी मानते है. हम कोई गलत कृत्य करें तो सजा भी देने का अधिकार सरकार ही रखती है.

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