Hindi short stories with moral for kids 2023 – कहानियां सुनना या पढ़ना न केवल बच्चों को बल्कि कई बड़े बुजुर्गो को भी पसंद होता है। लेकिन बड़ों की तुलना में बच्चे इसमें अधिक ही दिलचस्पी लेते हैं। कहानियां बच्चों को प्रेरित करती हैं कि उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। कहानियाँ न केवल बच्चों का बल्कि बड़े बुजुर्गो का मन परिवर्तन कर उन्हें अच्छाई एवं सकारात्मकता की राह  पर चलने को प्रेरित करती हैं।

यदि आप अपने बच्चों को भविष्य में एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं तो आपको उन्हें Moral stories in hindi यानी नैतिक कहानियां जरूर सुनानी चाहिए। इससे वह खुद को कहानियों की तरह ढालने की कोशिश करेंगे और निश्चित तौर पर एक दिन वह एक बेहतर इंसान के तौर पर दुनिया के सामने आएंगे।

बच्चों को केवल ऐसी कहानियां सुनानी चाहिए जो उन्हें अच्छाई और सच्चाई की राह पर चलना सिखाती हैं, जो उन्हें धैर्य के साथ आगे बढ़ना सिखाती है, जो उन्हें सत्कार्य करना सिखाती है। ऐसी कहानियाँ बच्चों को नेक इंसान बनने के लिए प्रेरित करती हैं और वे उसके अनुसार बनने लगते हैं।

नैतिक कहानियां मनोरंजन के साथ-साथ बच्चों को नैतिकता भी सिखाती हैं कि कैसे जीना है, कैसे कार्य करना है, कैसे मुसीबत से बाहर निकलना है आदि। कहानी के अंतिम भाग को कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जो हमें बताता है कि हमने इस कहानी से क्या सीखा।

बच्चों को कोई भी कहानी (Short moral stories in hindi) सुनाने के बाद यह बताना बहुत जरूरी है कि ‘इस कहानी से हमने क्या सीखा’, ताकि बच्चे उस कहानी का सार समझ सके कि यह कहानी हमें किस उद्देश्य सुनाई गई है। तभी तो बच्चे उस कहानी का उद्देश्य समझेंगे और उसके अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करेंगे।

बच्चे लगभग हर तरह की कहानियां सुनना पसंद करते हैं, लेकिन उन्हें आपको नकारात्मक कहानियाँ नहीं सुनानी चाहिए, नकारात्मक कहानियों से बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इसके अलावा कहानी में नायक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो अच्छे और सकारात्मक कार्य करता हो और अंत में जीत भी उसकी की होनी चाहिए, इससे बच्चे अच्छे और सकारात्मक कार्यों की ओर अग्रसर होंगे।

 

Short Stories in Hindi for Kids (2023)

इस पेज पर आपको कई प्रकार की Short stories of hindi में पढने को मिल जायेंगे, विशेष रूप यह सभी बच्चो के लिए पोस्ट किये गए है। हालाँकि इन्हें किसी भी आयु के लोग पढ़ सकते है या पढ़कर अपने बच्चो को सूना सकते है। तो चलिए बिना समय बर्बाद किए आगे बढ़ते हैं, और ‘Short inspirational stories in hindi’ से संबंधित जानते है।

100+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids : हिंदी कहानियां
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धनवान व्यापारी और मुनीम की कहानी: Short hindi story with moral

एक शहर में एक धनी व्यापारी रहता था, वह बहुत दयालु था। पूरे शहर में उनकी काफी प्रतिष्ठा थी। सारा समाज उनका सम्मान करता था। वह मंदिरों में दान करता था। गरीबों की सेवा करता था। गरीब बच्चों को कपड़े और किताबें बांटता था। इसके अलावा प्रत्येक रविवार को वह मंदिरों में नि:शुल्क भोजन कराता था।

व्यापार में उसे महारत हासिल थी, यही कारण था कि उसका व्यापार दिन-ब-दिन आसमान छू रहा था. ऐसे में उसे एक नए व्यापार के साथ काम करने का मौका मिला। उस नए व्यापारी ने उससे कुछ माल मंगवाया, तो इस व्यापारी ने उसके पास जो अच्छा माल था, वो उसे भेज दिया। नया व्यापारी सही समय पर अच्छा माल पाकर खुश हो गया।

कुछ दिनों के बाद व्यापारी ने अपने मुनीम को उस नए व्यापारी के पास पैसे का हिसाब करने और पैसे लेने के लिए भेजा, फिर मुनीम गाडी लेकर ड्राइवर के साथ नए व्यापारी के पास चला गया।

100+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids
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फिर नए व्यापारी ने मुनीम से पूरा हिसाब पूछा तो मुनीम ने कहा साहब, हमने आपको दस टन माल दिया है, जिसका हिसाब 1,74,555 रुपये होता है। उस व्यापारी ने भी वह हिसाब मान्य किया और मुनीम को 1,74,550 रुपये दिए।

मुनीम हिसाब का पैसा पाकर संतुष्ट हुआ। फिर वो वह पैसे लेकर ड्रायव्हर के साथ मालिक के घर वापस चला आया। घर पहुँँचकर मुनीम मालिक से बोला, साहब हमने नये व्यापारी को दस टन माल दिया था, जिसका कुल हिसाब 1,74,555 होता है। ये लीजियें, पुरे रुपयेंं मै ले आया हुं।

व्यापारी ने जब पैसे गिने तो वहाँ 1,74,550 रुपये थे। व्यापारी बोला, मुनीम जी इसमे तो पांच रुपये कम है। मुनीम बोला, साहब नया व्यापारी काफी व्यस्त था, इसीलिये उन्होंंने राउंड फिगर करके पैसे दे दिये।

व्यापारी ने मुनीम से फौरन जाकर 5 रुपये लाने के लिए कहा। तब मुनीम मालिक की गाडी लेकर ड्रायव्हर के साथ नये व्यापारी के पास चला गया। वहाँँ पहुंचकर मुनीम ने वो सारी बाते नये व्यापारी को बताई, तो नये व्यापारी ने भी मुनीम को 5 रुपये दे दिया।

अब मुनीम ड्रायव्हर के साथ वापस मालिक के घर चला आया और मलिक को 5 रुपये दिया। कुछ देर बाद मुनीम ने डरतें-डरतें मालिक से पुछाँ, साहब आप ने 5 रुपये के लिये 500 रुपये का पेट्रोल खर्च करवा दिया। मालिक पांच रुपये के पीछे हमारा 495 रुपये का नुकसान हो गया है।

मालिक ने मुस्कुरातेंं हुये जवाब दिया, मुनीमजी मैने ये कारोबार खाली हाथों से सुरु किया था। मुझे इसका अच्छा ज्ञान है. आज उस नये व्यापारी ने 5 रुपये कम दिये, कल शायद वह आपको 500 रुपये कम दे सकता है, इसीलिये यह करना जरुरी था। जब हम माल के लेन-देन मे कोई कमी नही करते, तो मोल भाव मे क्यूँ करेंं।

मालिक का जवाब सुनकर मुनीम संतुष्ट हुआँ, और बोला मालिक आपने आज मुझे पैसे की कदर के साथ साथ लेन-देन का भाव भी समझा दिया। मै आज के बाद कभी भी लेन-देन मे कोई गलती नही करुंगाँ।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमें किसी भी चीज या किसी भी कार्य में पूरी तरह से सफल होना है तो हमें उसके नियमों का पालन करना चाहिए, तभी हम पूरी तरह सफल हो सकते हैं।

 

चीटी और हाथी की रोचक कहानी: Short stories in hindi for kids

एक चीटी और एक हाथी था। एक दिन चीटी अपने घर से कुछ खाने के लिए बाहर निकली थी। तभी उसे एक हाथी दिखा, उसे देखकर वह अपने घर वापस आ गई।

फिर दुसरे दिन चीटी फिर से घर से बाहर निकल रही थी। उस दिन भी उसे हाथी दिखाई दिया। फिर उसने सोचा कि मै ऐसे ही डरूंगी, तो भूखी ही रह जाउंगी। तब वह हिम्मत का घुट पीकर अपना हौसला बुलंद करती है।

जिससे उसके मन में तरह-तरह के खयाल आते है, जैसे हाथी बडा है तो क्या हुआ, मै उससे छोटी जरुर हूँ, पर कमजोर नहीं हूँ। मुझे भी उसके नाक में दम करना आता है। जब मै उसके नाक में घूसहर उसे काटूँगी तो वह रोना बंद नहीं करेगा। लेकिन उसे डर भी लगता है, तब दूसरी चीटी उसे बताती है कि हाथी तो फुक-फुक के चलता है। हाथी जितना मोटा है उतना ही अधिक चीटी से डरता है। ऐसे में हम भले हाथी से क्यो डरे।

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फिर दुसरे दिन चीटी हिम्मत करके भोजन के लिए घर के बाहर निकलती है। तभी उसे हाथी दिखाई देता है, पर वो हाथी से बिलकुल भी नही डरती है। वह खाना खोजते हुए एकदम हाथी के सामने जाकर खडी हो जाती है। उसे देखकर हाथी हसता है और हाथी उसे पुछता है.. ये चीटी तुम यहां क्या कर रही हो? फिर चीटी उसे जवाब देते हुए कहती है,.. मै अपना काम कर रही हूँ।

फिर हाथी बोलता है.. कौन सा काम? चीटी बोलती है.. हमे भूख मिटाने के लिए कुछ खाने की चीजे ढूंढना पडता है, तभी हमारी भूख मिटती है. इस पर हाथी हसता है और कहता है.. कि तू अपना साइज़ तो देख, मेरे सामने आने की हिम्मत कैसे की तूने, अगर गलती से मैंने अपना एक पैर तुझ पर रख दिया तो तु मर ही जायेगी।

इस पर चीटी हाथी को कडक आवाज में जवाब देती है.. ज्यादा इतरा मत, मै साइज़ से जरुर छोटी हु, पर मै तुमसे ज्यादा दिमाग वाली हु। यदि मै तुम्हारे नाक में घूस गयी ना, तुम्हारी सारी हवा बाहर निकल जाऐगी।

फिर हाथी बोलता है.. चलो देखते है कि कौन जीतता है और कौन हारता है। तभी उन दोनो कि लढाई सुरु हो जाती है। फिर हाथी चीटी पर पैर रखने की कोशिश करता है। तभी चीटी हाथी के पैर से चढ़ते हुए उसके नाक में घूस जाती है और वहां जोर-जोर से काटने लगती है। हाथी बहुत तडपने लगता है, रोने लगता है और चीटी से माफ़ी मांगता है।

तब चीटी कहती है.. और निकालूं तेरी दादागिरी, अब और हसेगा किसी पर, तब हाथी रोते हुए चीटी से माफ़ी मांगता है। इस तरह छोटी सी चीटी की जीत हो जाती है और उतना बडा हाथी हार जाता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कोई छोटा या कोई बडा नही होता है, हमारी सोच छोटी-बड़ी हो सकती है। छोटा भी बड़ों का काम कर सकता है, एक छोटी सी चीटी भी हाथी को हरा सकती है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि किसी की कमजोरी पर बेवजह हँसे नहीं, शरीर के शक्ति से बड़ी दिमाग की शक्ति होती है।

 

चीटी और कबूतर की अनोखी कहानी: Hindi short stories with moral

फुलवानी गाव में एक भिकू नामक व्यक्ती रहता था। वह रोज अपनी गाय और मेंढी को चराने जंगल में लेकर जाता था। एक दिन वह गाय और मेंढी चराते-चराते जंगल में कहीं दूर निकल गया। जंगल घना होने की वजह से उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि किस दिशा से घर जाना चाहिए और किस दिशा से नहीं। तभी उसे एक सुंदर कबूतर आसमान में उड़ता दिखा।

वह कबूतर बहुत ही सुंदर था। उसके पंख मानो निले आकाश में सफेद रोशनी कि तरह थे और उसकी आँखे लाल सूरज की किरणों की तरह थी। भिकू की उस कबूतर पर से नजर ही नहीं हट रही थी और वह कबूतर का पीछा करने लगा। पीछा करते–करते भिकू उस कबुतर के घोसले तक पहुंच गया। कबुतर अपने घोसले में जाकर बैठ गया।

भिकू फिर घर का रास्ता ढूंढने लगा। कुछ देर के बाद उसे घर का रास्ता मिल ही गया। वह घर जाकर अपनी मां से बोला.. मां मैने आज एक बहुत ही सुंदर कबूतर देखा, इससे पहले मैने उसके जैसा कबूतर कहीं नही देखा। मै उस कबूतर को कल जरूर घर लाउंगा। उसकी मां बोली.. बेटा उसे पालने के लिए ही ला रहे हो ना। भिकु बोला.. नही मां सब्जी के लिए ला रहा हूँ। अगर वो कबूतर इतना सुंदर है तो, सोचो उसकी सब्जी कितनी अच्छी लगेंगी।

दुसरे दिन भिकू उस जंगल में गया और उस कबूतर को ढूंढने लगा, लेकिन कहीं भी भिकू को वो कबूतर नजर नही आया। तीसरे दिन फिर भिकू जंगल गया और उस कबूतर के घोसले वाले पेड पर चढकर भी देखा, पर कबूतर वहा भी नही था। भिकू एक–दो दिनो तक यही सोचता रहा कि वो कबूतर कहा चला गया होगा, वो मुझे कहा मिलेंगा।

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फिर कुछ दिनो बाद वर्षा ऋतू का मौसम आया। एक दिन की बात है, जब वर्षा बहुत ही होने के कारण जंगल में पाणी भरने लगा था। एक चीटी जमीन पर थी, वह वर्षा के पाणी से बह रही थी। तभी वो सुंदर कबूतर आया और उस चीटी को अपनी चोच में उठाकर उसे एक सुरक्षित जगह पर ले गया।

तब चीटी कबूतर से बोली.. हे कबूतर भाई, तुमने मेरी जान बचाई है, उसके लिए धन्यवाद। कभी मै तुम्हारे काम आ सकती हु तो मुझे जरूर बताना। कबूतर बोला तुम इतनी छोटी सी हो, मेरी मदत कैसे करोगी, यह कहकर कबूतर वहां से उड जाता है।

अगले ही दिन भिकू जंगल में गाय और मेंढी चराने के लिए आता है। अचानक उसकी नजर उस सुंदर कबूतर पे पडती है, वह मन ही मन में सोचता है कि आज मै इसे नही छोडूंगा, इसने मुझे बहुत तडपाया है। यह कहकर भिकू उस कबूतर पर तीर से निशाना लगाता है।

उतने में वह चीटी भिकू के पैर को जोर से काटती है और उसका निशाना चूक जाता है। फिर वो कबूतर इस मौके का फायदा उठाकर वहां से उड जाता है। फिर उस कबूतर को पता चलता है कि उसकी जान उसी चीटी ने बचाई है। फिर वह चीटी के पास जाकर कहता है.. चीटी बहन तुम्हारा बहुत–बहुत सुक्रिया, तुमने मेरी जान बचाई है। चीटी बोली.. उस दिन आपने मेरी जान बचाई थी, आज मैंने आपकी जान बचाई है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी किसी को छोटा समझने की गलती मत करना, क्योंकी समय आने पर चीटी भी हाथी के नाक में दम कर देती है।

 

डाकुं, वृद्ध बाबा और घोड़े की कहानी: Moral stories in hindi in short

इस कहानी में तीन पात्र है। दो आदमी और एक घोड़ा। यह घोड़ा दो पुरुषों के बीच द्वंद्ववाद निर्माण करता है। इस कहानी में एक तरफ डाकू जामवल सिंह है और दूसरी तरफ एक वृद्ध बाबा अम्बरलाल और इन दोनों के बीच घोडा जिसका नाम पवन है। जो बाबा और डाकू के बीच द्वंदवाद की लकीरे बना देता है।

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‘पवन घोडा’ बाबा अम्बरलाल को अत्यंत प्रिय होता है। बाबा के भक्ति भजन से जो भी समय बचता है वह घोड़े को अर्पण करता है। घोड़े से बाबा को इतना लगाव था कि वे अपना अधिकाँश समय उसी के आसपास बिताते है। बाबा अंबरलाल घोड़े से इतना प्रेम करते थे कि बाबा और घोड़े की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई थी।

घोड़े की यह चर्चा धीरे धीरे काफी प्रसिद्द हुई। यह बात डाकू जामवल सिंह को पता चली। इसलिए उसके मन मे उस घोड़े को देखने इच्छा उत्पन्न हुई। तब वह बाबा अम्बरलाल के घर पंहुच गया। डाकू को अपनी ओर आता देख बाबा अम्बरलाल थोड़े घबरा गए।

डाकू जामवल सिंह बाबा अम्बरलाल के सामने घोड़े को देखने की इच्छा प्रकट करता है। यह सुनकर बाबा को तसल्ली होती है कि वह उसे कुछ नहीं करेगा। तब बाबा अम्बरलाल अपने घोड़े पवन की खूबियों को विस्तार से बताते है, उसके बाद घोड़े को दिखाने के लिए बाबा डाकू जामवल सिंह को अपने अस्तबल मे लेकर जाते है।

घोड़े को देखते ही डाकू जामवल सिंह को उसकी सवारी करने की इच्छा होती है और वह बाबा से घोड़े की सवारी करने की अच्छा प्रकट करता है। बाबा ख़ुशी से वह घोडा जामवल सिंह को सवारी के लिए दे देते है।

डाकू जामवल सिंह घोड़े की सवारी करके वापस आता है और बाबा को बताता है कि मै यह घोडा एक दिन लेकर जाऊँगा। यह घोडा मुझे बहुत पसंद आ गया है, ऐसा कहकर डाकू वहां से चला जाता है।

इस बात को सुनकर बाबा बहुत दुखी हो जाते है, अब बाबा को रात में भी नींद नहीं आती है। उन्हें हर समय यह भय लगा रहता है कि कही से डाकू जामवल सिंह ना आ जाये और उसके घोड़े को न लेकर चला जाए।

लेकिन जब कई दिनों तक डाकू नहीं आता है तो बाबा इस भय से निश्चिन्त हो जाते है और वह आराम से अपनी जिंदगी बिता रहे होते है। लेकिन एक दिन डाकू जामवल सिंह भेस बदलकर अपाहिज के रूप मे आता है बाबा को घोडा मांगता है।

तब बाबा उसे मदद हेतु घोडा दे देते है। परन्तु उन्हें धोका मिलता है। उस समय डाकू जाते-जाते बाबा से कहता है कि बाबा मैंने आपसे कहा था ना की मै यह घोड़ा एक दिन लेकर चला जाऊंगा। ऐसा कहकर डाकू वहां से निकलने लगता है।

तब बाबा बहुत ही दुखी होकर डाकू से कहते है कि, जामवल सिंह अब इस घटना को सुनकर कोई भी दीन-दुखियों की सेवा करने आगे नहीं आएगा। मैंने तुम्हे अपाहिज समजकर तुम्हारी मदद हेतु घोडा दे दिया, लेकिन मुझे बहुत बड़ा धोका मिला।

मुझे इस बात का जरा भी दुःख नहीं की तुम मेरा सबसे प्रिय घोडा लेकर जा रहे हो, मुझे दुःख इस बात का है कि इस घटना के बाद कोई भी दीन-दुखियों की सेवा करने आगे नहीं आएगा, अब के बाद कोई उन विश्वास नहीं करेगा।

तब इन बातो को सुनकर डाकू वहां से चला तो जाता है, लेकिन बाबा अम्बरलाल के वह शब्द डाकू के कान मे बार-बार गूंजते रहते है। घर आकर डाकू जामवल सिंह यह सोचने लगता है कि बाबा के कितने महान और उच्च विचार हैं, उन्हें इस घोड़े से कितना प्रेम है।

इसकी रखवाली के लिए बाबा अम्बरलाल कई रात सोये नहीं. लेकिन आज उनके मुख पर घोड़े को लेकर दुख की एक रेखा तक नहीं थी। उन्हें तो केवल यह ख़याल था कि कही लोग दीन-दुखियों, अपाहिजों की मदद और उन पर विश्वास करना न छोड़ दे।

इतने महान विचारो वाले व्यक्ति से मैंने दगाबाजी की, यह सोचकर डाकू जमवाल सिंह को अपनी गलती का एहसास होता है। फिर वह घोड़ा लेकर बाबा अंबरलाल के अस्तबल में जाता है और उसे वहीं बांध देता है। उसके बाद, वह अपनी गलती के लिए बाबा से माफी माँगता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कुछ सकारात्मक बातें बड़े-बड़े डाकुओं का भी मन परिवर्तन कर सकती हैं। कुछ सकारात्मक बातें और सकारात्मक विचार व्यक्ति को गलत रास्ते पर चलने से रोक सकते हैं, उन्हें सही दिशा दिखा सकते हैं।

 

हिरन और शिकारी की दर्द भरी कहानी: Short motivational story in hindi

वसुंधरा नगरी का एक राजा था। एक युध्द के दौरान राजा को सिंहासत में ये नगरी मिली थी। राजा की पांच रानियां थीं, लेकिन राजा उनमें से बड़ी रानी से ज्यादा प्रेम करता था। बड़ी रानी का नाम वसुंधरा था, इसलिए राजा ने अपनी प्रिय रानी के नाम पर उस नगरी का नाम वसुंधरा रखा था।
 
राजा वसुंधरा रानी की सभी ख्वाईसे पूरा करता था। वसुंधरा रानी को अलग-अलग व्यंजन खाना बहुत पसंद था। रानी खाने के मामले में बहुत ही लालची थी। रानी की एक दासी भी थी, जो रानी के मायके से आयी थी। रानी की दासी बहुत चालाक थी।
 
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एक दिन राजा दुसरे राज्य में छान बिन करने गये थे और रानी अपनी दासी के साथ बगिचे में टहेल रही थी। कुछ समय के बाद रानी को हिरन का झुंड उस बाग़ में आते दिखा, रानी को उस झुंड मे से एक हिरन बहुत पसंद आ गई। उस हिरन को देखकर रानी के मुह में पानी आ गया।

उसके बाद रानी हिरन को पकडने के लिए दौडी, तो हिरन छलाग लगाकर भाग गई और रानी नाराज होकर महल में चली गई। फिर दुसरे दिन दासी ने रानी से कहा.. महारानी.. कहते है हिरन का मास बड़ा ही स्वादिष्ट लगता है, एक बार जो खाएगा वो बार-बार खाता रहेगा।

रानी बोली.. अच्छा इतना स्वादिष्ट होता है हिरन का मास.. तो फिर ठीक है, आज महाराज को हिरन पकडने के लिए कहती हूँ। तब रानी दासी को राजा के पास भेजती है, दासी, रानी की हिरन खाने की ख्वाहिश राजा को बताती है।

राजा फौरन प्रधान को बुलाता है और कहता है.. प्रधान हमारे नगर के किसी एक उत्तम शिकारी को बुलाओ, उसके बाद प्रधान शिकारी को बुलाता है। शिकारी राजमहल में उपस्थित होता है और कहता है.. बताईये महाराज क्या हुकुम है? राजा कहता है.. शिकारी हमारी रानी को हिरन का मास खाना है, रानी जिस हिरन को लाने के लिए कहेगी तुम उस हिरन का शिकार करके लाओ।

जो हिरन रानी को पसंद आई थी, उस हिरन के बारे में रानी ने शिकारी को बताया और कहां कि.. देखो शिकारी, मुझे वही हिरन चाहिए। उसके बाद शिकारी शिकार के लिए निकलता है, तब कुछ समय बाद उसे वो हिरन का झुण्ड और वो हिरन दिखाई देती है, जिसके बारे में रानी ने बताया था। उसके बाद शिकारी उस हिरन के पीछे दौड़ता है पर हिरन छलांग लगाकर वहा से भाग जाती है।

फिर दुसरे दिन शिकारी नदी के किनारे उस हिरन को पानी पीते हुए देखता है और उसके अगले दिन शिकारी नदी के किनारे एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ कर हिरन का इंतजार करता है। उतने में ही वह हिरन पानी पीने आती है, तब शिकारी हिरन पर तीर चलाता है, लेकिन चुक जाता है, हिरन सतर्क हो जाती है और भागने लगती है तब शिकारी कहता है.. रुक जाओ, तुम मेरे हाथ से बच नहीं पाओगे।

हिरन कहती है.. हे शिकारी मुझे छोड़ दो, मुझे मेरे बच्चे को दूध पिलाने जाना है और मेरा पति भी बीमार है उसका भी मुझे ही ध्यान रखना है। शिकारी बोलता है.. नही, तुम मुझे अपनी मीठी-मीठी बातो में फसा नही सकती।

हिरन बोली.. हे शिकारी मुझे एक बार अपने बच्चे और पति से मिलने दो, फिर मै तुमारे साथ चलुगी। शिकारी हिरन के साथ जाता है, हिरन गुफा में जाकर बच्चे को देखकर कहती है, एक बार तुझे अच्छे से देखलू मेरे लाल.. बच्चा बोलता है क्या हुआ माँ, क्या बात है, आप ऐसे क्यू बोल रही हो।

हिरन अपने पति से कहती है, आप भी जल्दी ठीक हो जाओं, आपको हमारे बच्चे का ख्याल रखना है। उसका पति कहता है.. क्या हुआ, तुम ऐसे क्यू कह रही हो। तब हिरन अपने पति को रोते हुए सब कुछ बताती है, तब उसका पति कहता है, तो क्या हुआ, हम यहाँ से दूसरी जगह पर चले जाएगे।

पर हिरन कहती है.. नही, मै शिकारी को वादा करके आयी हु, मै अपना वादा नही तोड सकती। यह कहकर हिरन जाने लगती है, उसका पति कहता है.. रुको, तुम मत जाओ, मै शिकारी के साथ जाउगा, वैसे भी मेरी हालत इतनी अच्छी नही है कि मै हमारे बच्चे की देखभाल कर सकूँगा, महाराज भी मेरे जैसा बड़ा शिकार देखकर खुश हो जायेंगे।

बच्चा कहता है.. आप दोनों नही जायेंगे, मै जाउगा शिकारी के साथ, माँ आप पिताजी का ख्याल रखना, मै छोटा हु इसलिए महाराज और महारानी को मेरा मास अधिक स्वादिष्ट और खाने में मुलायम लगेगा।

उन तीनो की बाते सुनकर तीनो का एक दुसरे के प्रति स्नेह देखकर शिकारी के आँखों में आसू आ गए, उसे लगता है, मै कितना पापी हु, जो एक परिवार को एक-दुसरे से अलग कर रहा हु, उसे अपने गलती का एहसास हो जाता है।

तब शिकारी हिरन से कहता है.. आप लोग कहीं नहीं जायेंगे, अब मै किसी को एक-दुसरे से अलग नहीं करूँगा। मै महाराज के पास जाकर सब समझा दूंगा, यह कहकर शिकारी वहा से रोते हुए चला जाता है।

उसके बाद शिकारी राजा के पास जाकर कहता है.. महाराज मै आपका काम नही कर सकता, मै अपने शिकारी पद का त्याग कर रहा हु। राजा ने कहा.. क्या हुआ शिकारी तुम ऐसे क्यों बोल रहे हो और तुम हिरन भी नही लाए।

शिकारी राजा को रोते हुए सब कुछ बताता है और कहता है.. महाराज जैसे हम इंसान आपकी प्रजा है, वैसे ही पशु-पंक्षी भी आपकी प्रजा है, आपका कर्तव्य है की आप अपने प्रजा की रक्षा करे ना की भूक मिटाने के लिए उनका शिकार करे। राजा को अपनी गलती का एहसास हो जाता है, उसके बाद महाराज अपने रानी और दासी को उनके इस लालची बर्ताव के लिए सजा देते है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि, जिस तरह मनुष्य का परिवार होता है, उसी तरह पशु-पक्षियों का भी परिवार होता है। यदि हमारे परिवार से किसी भी मृत्यु हो जाती है तो हम पर क्या बीतती है, आप खुद समज सकते है। वैसे अगर हम किसी पशु-पक्षी का शिकार करते है तो उनके परिवार की क्या हालत होती होंगी, इसका अहसास भी हमें होना चाहिए।

 

दोस्ती की एक कहानी: Friendship story for kids in hindi

एक जगंल में तीन दोस्त बड़े ही आनंद से रहते थे, कछुआ हिरण और कौआ। जंगल में सभी प्रकार के प्राणी और पक्षी भी रहते थे, लेकिन उनके जैसा कोई न था।

एक दिन हिरण बोली अरे.. बैठे-बैठे मै बोर हो गई हूँ.. चलिए कोई ऐसा खेल खेलते है, जिसमें सभी को मजा आ जाए। कछुआ और कौआ बोला.. बैठे-बैठे हम भी बोर हो चूके है, चलो अब कोई खेल खेलते है।

Friendship story for kids
Short story in hindi

कौवे को हिरन बोली.. तुम एक पेड पर बैठ कर आंखे बंद करके दस तक गिनती करो और हम दोनों छुपेंगे। उसके बाद तुम हमे ढूँढना, ढूढने पर जो भी पहला मित्र तुम्हे दिखेगा, वो तुम्हारी जगह पर दस तक गिनती करेगा और तुम छूप जाना।

कौआ गिनती करने लगा हिरन और कछुवा छुपने लगे, इसी तरह खेल चलता रहा। जब खेल-खेल कर तीनो मित्र थक गए तब एक जगह बैठ कर बाते करने लगे।

उतने में एक शिकारी वहाँ से गुजर रहा था, तभी उसकी नजर हिरन कौआ और कछुवे पर पड़ी। शिकारी ने जैसे ही उन्हें देखा तो वह उन्हें पकडने के लिए दौड़ा, खतरे का आभास होते ही हिरन और कौआ रफूचक्कर हो गये, यानि की वहाँ से भाग गये।

कछुवे को आभास हुआ पंरतु कछुवे की चाल धीर होने के कारण शिकारी के हाथ लग गया और शिकारी उसे अपने दुपटे में बांधकर ले जाने लगा। शिकारी मन ही मन खुश हो गया, हिरन नही तो कछुवा ही सही, रात का तो प्रबंद हो गया, यह कहकर वहां से जाने लगा।

उधर हिरन और कौआ अपने मित्र को ऐसे शिकारी के कैद में देखकर दुखी होने लगे, शिकारी भोजन में कछुवे को खाने वाला है यह प्रतीत होने पर हिरन और कौवे ने एक योजना बनाई।

कौवे ने हिरन को कहाँ कि तुम शिकारी के सामने चले जाओ, जब शिकारी तुम्हे देखेगा तो अपनी पोतली जमीन पर रखकर तुम्हे पकड़ने के लिए दौड़ेगा, तब मै जमीन पर रखी हुई वह पोतली पकडकर उड़ जाऊगाँ और तुम भी वहा से भाग जाना।

ठीक इसी तरह हिरन शिकारी के सामने चली गई, तब शिकारी हिरन को पकडने के लिए वह कछुवे वाली पोतली जमीन पर रखता है और हिरन के पीछे दौड़ता है। इधर कौआ अपनी चोच में वह पोतली पकडकर उड़ जाता है।

शिकारी हिरन को पकडने के लिए दौड़ते हुए पीछे मुडकर देखता है तो कौआ पोतली चोच में पकडकर उड़ रहा होता है और इधर हिरन पलक झपकते ही भाग जाती है।

उसके बाद कौआं वह पोतली लेकर किसी महफुस जगह पर रख देता है, इस तरह कछुवे को शिकारी के चंगुल से आजाद कराकर तीनो मित्र फिर से आनंद से रहने लगते है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि असली दोस्ताना वही जो समय पर काम आए। इसके अलावा इस कहानी में हमें ‘युक्ति की शक्ति’ भी देखने को मिलती है।

 

कृतज्ञ तोते की कहानी: Emotional short story in hindi

एक बार की बात है जब नारदमुनी सफ़र पर निकले थे, तभी उन्होंने एक सुंदर वन देखा, उस वन की सुंदरता मन मोहनेवाली थी। चारो तरफ हरियाली फैली थी, पेडो पर फूल और फल लगे हुए थे।

वहां हर पेड़-फूल मन को लुभानेवाला नजारा था। तभी अचानक नारदमुनी की नजर एक तोते पर पडी। वो तोता एक सूखे पेड पर उदास एवं नाराज बैठा था।

नारदमुनी सोचने लगे कि यंहा इतनी हरियाली है, यहाँ पेड-पौधे हरियाली फल और फूल से भरपूर है, फिर यह भी तोता एक सूखे पेड पर गुमसुम क्यों बैठा है? Emotional short story with moral ये देखकर नारदमुनी को आश्चर्य हुआ, उन्होंने उस तोते से पूछा कि यहाँ इतने हरे-भरे पेड़-पौधे फल-फूलो से लगे है, फिर भी तुम सूखे पेड पर क्यों बैठे हो। सभी पक्षी अपना जीवन आंनद से व्यतीत कर रहे है और तुम इसे छोड़कर इस सूखे पेड पर क्यों बैठे हो?

तोते ने कहाँ नारदमुनी जी कुछ दिनों पहले ये पेड़ भी हरा-भरा फूलो-फलो से संपन्न था। इस पेड़ ने मुझे मीठे-मीठे फल खिलाए, आसमान की तपती धुप से छाव दी। बारिस के पाणी से मेरी रक्षा की। इसने मुझे बरसो तक आश्रय दिया और हर आंधी तूफान से मेरी रक्षा की, अब आप ही बताए मै अपने आश्रदाता को कैसे भूल जाऊ।

तोते की यह बात नारदमुनी के दिल को छू गई। तोते का पेड़ के प्रति इतना स्नेह देखकर नारदमुनी बोले.. तुम्हारा इस पेड़ के प्रति यह स्नेह एवं तुम्हारी कृतज्ञता को देखकर मै बहुत प्रसन्न हुआ और यह कहकर नारदमुनी ने उस पेड़ को फिर से हरा-भरा कर दिया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि भलाई करने वालो का कभी उपकार भुलना नही चाहिए, जब एक तोता इतना कृतज्ञ है, हम तो इंसान है। एक कहावत है, अगर भला चाहते हो, तो भला करो। तोते के इस कृतज्ञता ने साबित कर दिया कि अगर हम किसी का भला करते है हमारा भी भला होता है, इसलिए हमें तोते की तरह कृतज्ञ होना चाहिए।

 

दो हंस और एक कछुए की कहानी: Friendship short hindi story

दो हंस और एक कछुआ इन तीनो के बीच काफी गहरी दोस्तों थी। एक जगंल में यह तीन दोस्त बहुत ही हसी खुशी से रहते थे। एक समय उस जगंल में बारिस न होने की वजह से जगंल के पेड पौधे सुख गये, तालाब सुख गये, सभी उस जगंल को छोडकर दूसरी जगह जा रहे थे।

तभी हंस बोला.. अरे यार हमे भी चलना चाहिए, वरना हम भी इन पेड-पौधे की तरह सुखकर मर जाएगे, लेकिन भाई कछुए हमे तुमको छोडकर कहीं जाने का मन नही हो रहा है, ये कहकर हंस के आँखों में पानी आ गया।

दूसरा हंस बोला.. कछुआ हमारी तरह उड़ना जानता तो हम तीनों दोस्त उड़कर किसी और जगह चले जाते। तभी कछुए के दीमाग में एक युक्ति आई, उसने हंस से कहा.. हम तीनो उड़कर जा सकते है।

हंस बोला कैसे? कछुए ने एक मजबूत लाठी लाया और कहा कि तुम दोनो इस लाठी को दोनों तरफ से मजबूत पकडना और मै बीच में अपने दांतों से इस लाठी को मजबूत पकडूगाँ।

ये सुनकर दोनों हंस बोले.. यह युक्ति बहुत अच्छी है, लेकिन तुम हमे वचन दो कि चाहे कुछ भी हो जाए तुम अपना मुहँ बिल्कुल भी मत खोलना, कछुआ बोला नहीं खोलूँगा, ये कहकर हंसो और कछ्वे की आसमान से सवारी निकली।

100+ Short Stories in Hindi with Moral for Kids
Story in hindi with moral

तीनो आकाश में उडते हुए आनंद उठा रहे थे, जब हंसो और कछुए की ये सवारी आकाश से जा रही थी, तब एक आदमी ने दुसरे आदमी से कहा और देखते ही देखते, वहाँ भीढ़ हो गई। उनको देखकर लोग हसने लगे और कहने लगे अरे भाई देखो-देखो उड़ने वाला कछुआ।

एक आदमी बोला अरे यह कछवा तो मर चूका है, यह सुनकर कछुए को गुस्सा आया और वो बोला.. मरे मेरे दुश्मन। जैसे ही कछुए ने मुहँ खोला वैसे ही वो आसमान से धरती पर जा गिरा और वह मर गया।

दोनों हंसो ने कहा था कि किसी भी हालत में अपना मुहँ बिलकुल भी मत खोलना, लेकिन कछुआ अपना मुहँ बंद न रख सका और मर गया। हंश अपने दोस्त कछुए खोकर बहुत ही दुखी हुए और रोते हुए बोले.. अगर तुम अपना मुंह नहीं खोलते तो आज तुम हमारे साथ ही होते।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि ज्यादा गुस्सा करना, ज्यादा बोलना भी उचित नहीं होता है। अपने अन्दर सहनशीलता होनी चाहिए। हम जब किसी को वचन देते है तो उस वचन का हमें पालन भी करना चाहिए। कछुए ने अपने वचन का पालन नहीं किया और कछुआ अपना मुंह खोलकर अपनी जान गवा बैठा।

 

धूर्त लोमड़ी की कहानी: Short animal stories in hindi

एक बहुत बड़ा जगल था। उस जंगल में कई सारे प्राणी थे और उस प्राणियों में एक लोमड़ी भी थी। उस जंगल का राजा शेर था। वह जो कहता था, वह सभी उस जंगल के प्राणियों को मानना पड़ता था।

धूर्त लोमड़ी की कहानी - short story with moral for kids
Story in hindi with moral

लोमड़ी बहुत ही चतुर थी, वह किसी भी हालत में उस जंगल पर राज करना चाहती थी। एक दिन वो इसी सोच में चलते चलते एक गाँव में पहुँच गई। रात का समय में था, वह चलते चलते ऐसी जगह गीर गई, जहाँ कपड़ो को लगाने वाला नील भिगोया हुआ था।

दरअसल जमीन के अन्दर एक ‘कंक्रीट सीमेंट का एक टाका’ बनाया हुआ था और उस टाके में कपड़ो को लगाने वाला नील भिगोया हुआ था और नील में लोमड़ी जा गिरी, जिसके वजह से लोमड़ी पूरी तरह से नीले रंग की हो गई थी।

खुद को नीले रंग का देखकर लोमड़ी के मन में एक योजना विकसित हुई और फिर वह जंगल में गई। जंगल के सभी जानवर उसे देखकर यह सोचने लगे कि यह कौन सा जानवर होगा।

तब धीरे धीरे सभी जानवर इकट्ठा हुए और उसे देखने लगे, लोमड़ी ने बताया कि मुझे भगवान ने इस जंगल की रक्षा करने के लिए भेजा है। आज से मै इस जंगल की रानी हूँ। तुम सबको मेरी बात माननी होगी और जो कोई भी मेरी बात नहीं मानेगा, उसे मार दिया जाएगा।

सभी जानवरों ने कहा कि हम आपकी बात मानेंगे, जब यह बात शेर तक पहुंची तो शेर भी उस लोमड़ी की सेवा में आ गया। शेर ने कहा कि हम सब आपकी बात मानेंगे और यहाँ आपको किसी भी चीज की कमी नहीं होगी।

जंगल में लोमड़ी की सेवा एक महारानी की तरह होने लगी, लोमड़ी इस योजना और जानवरों द्वारा की जाने वाली सेवा से बहुत खुश थी और यही वह चाहती थी।

कुछ दिनों बाद जंगल की अन्य लोमड़ीया रात के समय आवाज करने लगी। उस आवाज को सुनकर महारानी लोमडी अपने आप को रोक नही पाई और वह भी लोमडी की आवाज निकालने लगी।

यह देख शेर और अन्य जानवर समझ गए कि यह एक धूर्त लोमड़ी है, जो हमें बेवकूफ बना रही है कि इसे भगवान ने भेजा है। उसके बाद शेर का दिमाग ख़राब हुआ और उसने उस धूर्त लोमड़ी को कच्चा चबा डाला और इस तरह धूर्त लोमड़ी मारी गई।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें महान बनने के लिए कभी भी किसी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए, क्योंकि झूठ एक दिन सामने आता ही है।

 

युक्ती में शक्ति: Small moral stories in hindi

एक घनघोर जगंल था, जगंल के बाजु में एक छोटा सा गाव था। उस गाव में एक भोला नाम का आदमी और उसकी पत्नी रहते थे। भोला बहुत ही आलसी एवं कामचोर था, जिसकी वजह से वो हमेशा अपने पत्नी से डाट खाता था।

भोला नाई का काम करता था और उसकी पत्नी लोगो के घरो में बर्तन माँजती थी। एक दिन भोला अपना काम खत्म करके शहर से वापस पैदल चलते चलते आ रहा था। पैदल चलते-चलते वह जगंल तक पहुँच गया था, क्योंकि उसका गाँव जंगल से होकर गुजरता था।

जब वह जगंल तक पहुंचा तो वह थक गया था, उसे प्यास भी लग गई थी। पाणी पीकर वो थोड़ी देर एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठ गया, बैठे-बैठे उसकी आँख लग गई। तभी कुछ देर बाद अचानक जोर से हंसने की आवाज आई और जंगल के सभी प्राणी और पक्षी इधर-उधर भागने लगे।

प्राणियों की हलचल से भोला की आँख खुली तो उसने देखा की उसके सामने एक बड़ा सा राक्षस खड़ा था। भोला बहुत ही डर गया और चिल्लाने लगा- कोई मुजे बचाव, कोई मुजे बचाव।

राक्षस ने ऊँचे आवाज में बोला.. क्या तुम्हे पता नही, इस पेड़ के नीचे जो भी बैठता है वो मेरे हाथों से मारा जाता है। भोला ने कहा.. क्या है इस पेड़ में जो तुम मुझे मारना चाहते हो।

राक्षस बोला.. पेड़ में नही, पेड़ के नीचे जो गढ़ा हुआ खजाना है, मै उसकी रक्षा करता हूं। जब भी उसे कोई चुराने की कोसिस करता है तो में मार डालता हूँ।

तब भोला के दीमाग में एक युक्ति आई, भोला जोर-जोर से हसने लगा, तब राक्षस बोला। तुम हस क्यों रहे हो? तब भोला बोला.. मैं कौन हूँ, तुम मुझे जानते नही हो, मुझे राजा ने भेजा है, तुम्हारी आत्मा को वश में करने के लिए। उसके बाद भोला ने आईना निकाला और राक्षस को उसकी सकल दिखाई।

राक्षस बोला.. नही, तुम मुझे छोड दो, तुम मेरी आत्मा को क्यों वश में करना चाहते हो? भोला ने कहा.. क्योकि राजा के बहन की शादी नही हो रही है, इसलिए एक महान पंडित जी ने राजा को 101 राक्षस के आत्मावों की बली चढाने के लिए कहा। इसलिए राजा ने मुझे तुम्हारे जैसे राक्षसो के आत्मा की बली चढाने के लिए हजार स्वर्ण मृद्राये दिए है और तुम मेरी आखरी बली हो।

राक्षस ने कहा.. अगर आप मेरी आत्मा को छोड़ देते है, तो मै तुम्हे ये पूरा खजाना दे दुगाँ, जिसे तूम पूरे जीवन भर कभी ख़त्म नही कर पाओगे। भोलाने कहा.. अगर तुम मुझे यह खजाना दे रहे हो तो मैं भी तुम्हारी आत्मा को छोड़ दूंगा।

राक्षस ने सारा खजाना भोला को दे दिया, फिर भोला ने आईने को गोल घुमाया और उल्टा करके दिखाया। राक्षस को लगा की अब मेंरी आत्मा आजाद हो गई है, इसलिए वह बिना समय गवाए वहां से अदृश्य होकर भाग गया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि आगे वाला व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो पर दीमाग के सामने हमेशा हार ही जाता है। भोला अगर युक्ती का प्रयोग ना करता, तो मारा जाता।

 

विश्वास और हिम्मत की कहानी: Trust and courage short stories in hindi

आसमान की ऊंचाईयों पर एक हवाई जहाज उड़ रहा था, कुछ समय बाद अचानक अपना संतुलन खो बैठा और इधर-उधर लहराने लगा। सभी यात्री अपनी मृत्यु को समीप देखकर डर के मारे चीखने-चिल्लाने लगे। शिवाय एक 5-6 साल बच्ची के, जो मुस्कुराते हुए चुपचाप खिलौने से खेल रही थी, वोह बिल्कुल भी डर नहीं रही थी।

कुछ देर बाद हवाई जहाज सकुशल सुरक्षीत उतरा और यात्रियों ने राहत की सास ली। उसके बाद कुछ यात्रियों ने उत्सुकतावश उस बच्ची से पूछा कि बेटा हम सभी डर के मारे कॉप रहे थे, पर तुम तो बिल्कुल भी नही डर रही थी ऐसा क्यों ?

बच्ची ने जवाब दिया, क्योंकि इस हवाई जहाज के पायलट मेरे पिता हैं, मुझे पता था कि वह मुझे कुछ नहीं होने देंगे। उस लड़की का अपने पिता पर इतना विश्वास देखकर कुछ यात्रियों की आंखों में आंसू आ गए।

ऐसा हादसा कभी भी किसी के साथ भी हो सकता है, लेकिन मुसीबत के समय पर खुद को संभालने से दुसरो को भी हिम्मत मिलती है। हम आपको ऐसा नहीं कहते की तुम All is well कहो, लेकिन अगर आपको All is well कहने से हिम्मत मिलती है तो जरुर कहो। आपको All is well पर विश्वास है तो जरुर कहो, क्योंकि विश्वास से हिम्मत का जन्म होता है।

इसलिए कहते है हिम्मत-ए-मर्दा तो मदद-ए-खुदा। उस बच्ची में शायद इतनी हिम्मत ना थी लेकिन उसका उसके पापा पे पूरा विश्वास था कि वो अपने बच्ची को कुछ नही होने देंगे। उसके विश्वास में इतनी हिम्मत थी, इसलिए वो बच्ची बिलकुल भी नहीं डर रही थी।

ऊपर दिया हुवा All is well सिर्फ एक उदहारण था ना की हिम्मत बढाने का कोई मंत्र। विश्वास तो दिल से पैदा होता है और विश्वास से हिम्मत।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि विश्वास तो दिल से पैदा होता है, लेकिन उस विश्वास से हमें हिम्मत मिलती है।

 

मूर्ख गधा और गीदड़ की कहानी: Motivational short stories in hindi

एक गाँव में एक साहूकार रहता था। उसके पास एक गधा था। साहूकार उस गधे से दिनभर काम करवाता था, लेकिन उसे खाना देने में बड़ी ही कंजुशी कर रहा था।

एक दिन गधा रात में उदास होकर बैठा था, उसे देख गीदड़ उसके पास आया और बोला.. ‘अरे क्या हो गया गधे भाई, ऐसे उदास क्यों हो? गधा बोला.. क्या बताऊ भाई, मेरा मालिक बड़ा ही जालिम है।

मेरा मालिक मुझसे दिनभर काम तो करवाता है, लेकिन मुझे खाना पेट भर नहीं देता, मै कई दिनों से आधा पेट खाना खाकर अपनी जिन्दगी बिता रहा हूँ।

यह सुनकर गीदड़ बोला.. कोई बात नहीं, मै तुझे आज पेट भर खाना खिलाऊंगा, चलो मेरे साथ। गधा खाने की बात सुनकर बड़ा ही खुश हुआ और गीदड़ के साथ एक ऐसी जगह गया जहां खाने की कोई कमी नहीं थी।

वहाँ पर बहुत सारी हरी-हरी सब्जियाँ थी, यह देख गधा बड़ा ही खुश हुआ। गीदड़ बोला.. अब यहाँ तुम बिना आवाज किये पेट भर खाना खा सकते हो।

गधे ने हरी-हरी सब्जियाँ खानी शुरू की, एक डेढ़ घंटे के बाद गधे का पेट पूरा भर गया। उसके बाद गधा बोला.. शुक्रिया गीदड़ भाई, आज तुम्हारी वजह से मुझे पेट भर खाना खाने को मिला।

आज की रात मेरे लिए एक सुनहरी रात है, मैं इसे रंगीन बनाना चाहता हूं। देखो भाई आज ये चाँद भी देखने में कितना सुन्दर लग रहा है। इस सुनहरी रात में खाना खाने के बाद अब मेरा गाना गाने का बहुत मन कर रहा है।

गीदड़ बोला.. अरे क्या बोल रहे हो, मुर्ख हो क्या? गाना गाओगे तो इस खेत का चौकीदार जाग जाएगा और हम दोनों के लिए परेशानी होगी। गधा बोला.. तुमने मुझे ‘मूर्ख’ कहा।

गीदड़ बोला.. मूर्ख जैसी बात करोगे तो मूर्ख नहीं तो क्या कहूँगा। इस खेत का यदि चौकीदार जाग गया तो हम दोनों के लिए परेशानी होगी। लेकिन गधा गीदड़ की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं था।

उसके बाद गीदड़ ने सोचा कि यहाँ से निकलने में ही उसकी भलाई है, उसके बाद गीदड़ बोला.. भाई वैसे गाना तो आप बहुत बढियां गाते हो। मैं फूलों के हार के साथ आपका स्वागत करना चाहता हूं। मैं तुम्हारे लिए फूलों का हार लाने जा रहा हूं, तब तक तुम मस्त गाना गाओ।

गीदड़ के जाते ही मुर्ख गधा ढेचू-ढेचू करके गाना गाने लगा और उसकी आवाज से उस खेत का चौकीदार नीद से जाग गया। वो बड़ी सी लाठी लेकर आया और उसने गधे को मार-मार कर अधमरा कर दिया।

मुर्ख गधा वहां से बड़ी ही मुस्किल से अपनी जान बचाकर भागा, उसके बाद गधे को अपनी गलती का अहसास हो गया कि अगर मैंने गीदड़ की बात मान ली होती तो आज मुझे इतनी मार नहीं पड़ती।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी-कभी दूसरो की सलाह भी मान लेनी चाहिए, नही तो उसका परिणाम बहुत ही भयानक हो सकता है।

 

परिश्रम ही सच्चा धन होता है: Small story in hindi

एक किसान था, जिसके दो बेटे थे, वह दोनों ही बहुत आलसी और निकम्मे थे। वह अपने पिता को कामकाज में हाथ बठाने के बजाए आलस किया करते थे और इधर-उधर घूमते-फिरते थे।

किसान को अपने बेटों की बहुत ही फिकर थी, वोह सोचते थे कि मेरे मरने के बाद इनका क्या होगा, यह अपना पेट कैसे भरेंगे, अपने परिवार को कैसे संभाल पायेंगे।

एक दिन किसान की हालत बहुत ही गंभीर थी, यानी वह किसान मरने की हालत में था। तभी किसान ने अपने दोनों बेटो को बुलाकर उनसे कहां कि हमारे खेत में एक खजाना गढ़ा हुआ है। लेकिन वह किस जगह है इसकी जानकारी मुझे भी नहीं है, लेकिन खोदने बाद तुमे वो खजाना जरुर मिलेगा। इतना कहकर किसान भगवान को प्यारे हो गये।

खजाने की खबर सुनकर दोनो बेटों के मन में लालच आ गया और वो दोनों खेत गये और खेत को खोदने लगे। खजाने के लालच में कुछ ही दिनों में उन्होंने पूरे खेत को खोद डाला, लेकिन उन्हें खजाना नहीं मिला।

उसके बाद वह घर जाकर बैठ गए और वह अपने पिता को कोसने लगे, इसी तरह कुछ महीने बित गए और वर्षा ऋतु का आगमन हुआ। किसान के बेटों के पास पेट भरने के लिए सिर्फ एक ही जरिया था, खेती।

तब बाकी किसानो की तरह किसान के बेटो ने भी अपने खेत में बीज बोने शुरु कर दिए। वर्षा का पाणी पाकर वह बीज अंकुशित हुए और देखते ही देखते खेत लहराने लगे।

ऐसा लग रहा था कि हवा के झोके से खेत लहरा रहा है। यह देखकर किसान के बेटे बहुत खुश हुए, उन को समझ आ गया कि परिश्रम ही सच्चा धन होता है और वो अपने पिता के शब्दो का मोल भी समझ गये और उसके बाद वे अपने कामकाज में लग गये।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि आलस व्यक्ति को निष्क्रिय बना देता है और परिश्रम व्यक्ति को सक्रीय बना देता है। बिना परिश्रम धन की कामना करना व्यर्थ है, क्योंकि परिश्रम से ही धन की प्राप्ति होती है।

 

भक्षक कभी रक्षक नहीं बनता: Very short story in hindi

एक बडा सा तालाब था, जिसमे बहुत सी मछलियां और एक केकड़ा रह रहा था। एक हंस जो हर दिन उस तालाब पर आता था, पर उसके हाथ एक भी मछली नही लगती थी। जैसे ही हंस तालाब के पास जाता, सारी मछलियां पानी में अंदर की ओर भाग जाती थी।

एक दिन हंस तालाब के पास चुपचाप गया और मछलियो से कहने लगा.. डरो मत मै तुम्हारा मित्र हु, मै तुम्हे किसी भी प्रकार की हानि नही पहुचाऊंगा। मै तुम्हे एक बात बताना चाहता हु कि जल्द ही ये तालाब सूखने वाला है, इस तालाब का पानी मनुष्य किसी दुसरे कार्य में लगाने वाला है।

मछलियां इस बात को सुनकर घबरा गई और कहने लगी.. ये तालाब सुख जाएगा तो हमारा क्या होगा, पानी नही रहेगा तो हमारा जीवन खतरे में आ जाएगा और हम मर जाएंगे।

उसके बाद केकड़ा बोला जल्द ही हमे ऐसा तालाब या नदी ढूढनी पड़ेगी, तभी हम जीवित रह सकते है.. हंस मछलियो की बात सुनकर बोला.. घबराओ मत, मै तुम्हारी सहायता करुगा, मै तुम्हे एक ऐसी जगह पर ले जाउगा जहाँ पाणी की कोई कमी नहीं है, मै एक ऐसी जगह जानता हु जो यहा से थोड़ी ही दुरी पर है।

मछलियां बोली.. हंस क्या तुम हमें वहाँ ले जा सकते हो, हंस मुस्करा कर बोला.. तुम मेरे मित्र हो, तुम्हारी साहयता मै जरुर करूगां। यह कहकर हंस ने मछलियो को अपने बातो में फसा लिया और बेचारी भोली-भाली मछलियां हंस की बातो में आ गई।

मछलियां बोली.. पर तुम हमें एक साथ कैसे ले जाओगे.. हंस बोला मै अपनी चोच में पकड़कर तुम सबको ले जाउगां और दुसरे तालाब में छोड़ दुगाँ। मछलियां सोचने लगी की हंस हमारी कितनी मदत कर रहा है, लेकिन मछलियां इस बात से अंजान थी की हंस उन्हें बचा नही रहा था बल्कि अपनी भूख मीठा रहा था।

उसके बाद हंस ने अपना काम शुरू कर दिया, वह वहां से रोज 2 मछलियां ले जा रहा था और उन्हें ऐसी जगह छोड़ रहा था, जहां वह उन्हें कभी भी अपना शिकार बना सके, वह उन्हें वहां से दूर कहीं एक बड़ी सी चट्टान पर ले जा रहा था और उन्हें नोच-नोच कर खाकर अपनी भूख मीठा रहा था।

एक दिन फिर हंस तालाब के पास गया और मछलियों से कहने लगा.. तुम्हारे साथी तो उस तालाब में बहुत खुश है और वो तुमारी राह देख रहे है। ऐसा कहकर उसने फिर से एक मछली को अपनी चोच में पकड़ा और ले गया और उसे चटान पर ले जा कर खा गया।

दुसरे दिन हंस जब तालाब पर गया केकड़ा हंस से बोला.. अच्छा अब तुम मुझे ले जाओ.. हंस मन ही मन में खुश हो गया की आज उसे केकड़ा खाने को मिलेगा, हंस ने केकड़े को चोच में पकड़ा और ले जाने लगा।

हंस उसे एक बड़ी चट्टान की ओर ले जाने लगा, केकड़े की नजर उस चट्टान पर पड़ी, चट्टान के पास आते ही उसने देखा कि चट्टान पर मछलियों की हड्डियाँ हैं।

केकड़ा हंस की करतूत समझ गया, बिना देर किए केकड़े ने हंस की गर्दन को कसकर अपने हाथों में पकड़ लिया और दबाने लगा, केकड़े ने हंस की गर्दन को काफी देर तक दबाए रखा, जिससे हंस की मौत हो गई। उसके बाद केकड़ा वापस गया और मछलियों को यह बात बताई, मछलियाँ अपनी बहनों को खोकर बहुत दुखी हुई।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि, हमे झूठे और मतलबी लोगो से सावधान रहना चाहिए, हमें हमेशा ये ध्यान रखना चाहिए की भक्षक कभी भी रक्षक नहीं बन सकता।

 

शेर और चूहे की कहानी: Lion and mouse short hindi kahani

यह कहानी एक शेर और एक चूहे की है और इस कहानी में चूहा शेर की जान बचाता है। एक बार एक जंगल में शेर गहरी नींद में सो रहा होता है। तब एक चूहा उसके ऊपर चढ़ जाता है और उछल कूद करने लगता है।

चूहे की उछल कूद से गहरी नींद में सो रहा शेर नींद से जाग जाता है और चूहे को कहता है.. मेरी हठी तो दुर्धटना घटी, अब तुझे छोडूंगा नहीं चूहे। तूने मुझे बहुत परेशान किया है और तेरे कारण मेरी नींद पूरी नहीं हुई।

अब मेरा दिमाग ख़राब हो गया है, अब तुझे छोडूंगा नहीं। चूहा यह सुनकर डर से थर-थर कापने लगता है और फिर भागने लगता है लेकिन शेर उसे पकड़ लेता है।

डर के मारे चूहा थर-थर कापते हुए बोलता है.. मुझे माफ़ कर दीजिये.. मुझे माफ़ कर दीजिये.. आज के बाद मै ऐसा कभी नहीं करूँगा। प्लीज प्लीज प्लीज मुझे माफ कर दीजिये।

मै कसम खाकर कहता हूँ कि आज के बाद मै न तो आपको और न ही किसी को ऐसे परेशान करूँगा और आपको मेरी कभी भी जरुरत पड़े तो मै आपके काम जरुर आऊंगा या आपकी मदद जरुर करूँगा।

यह सुनकर शेर को बहुत हसी आती है, क्योंकि चूहा शेर की मदद करूँगा बोलता है। शेर को लगता है कि यह छोटा सा चुहाँ मेरी क्या मदद करेगा। फिर भी उसकी साहसिकता को देखते हुए शेर चूहे को छोड़ देता है।

उसके कुछ दिनों जगल में कुछ शिकारी शेर का शिकार करने आते है और जाल बिछाते है और उस जाल में शेर फस जाता है। उसके बाद वे लोग उस शेर को एक पेड़ से बांधकर रखते है।

शेर जोर-जोर से चीखने चिल्लाने, दहाड़ने लगता है, शेर की चीखने चिल्लाने और दहाड़ने की आवाज सुनकर चूहे को लगता है कि शेर किसी मुसीबत में है, उसे जाकर देखना चाहिए।

वह जाकर देखता है तो शेर एक जाल में फसा हुआ और एक पेड़ से बंधा हुआ होता है। यह देखकर तुरंत चूहा मदद के लिए दौडता है और जाल को अपने दांतों से कुतर-कुतर के शेर को उस जाल से आजाद कराता है। उसके बाद शेर तहे दिल से  चूहे को धन्यवाद कहता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है। समय आने पर छोटा भी बड़ो के काम आ सकता है।

 

एक लकड़हारे की कहानी: Motivational short stories in hindi

एक लकड़हारा जो प्रतिदिन जंगल में जाकर कुछ लकड़ियाँ इकट्ठा करता था और उन्हें बाजार में बेचकर कुछ पैसे इकट्टा करता था, ताकि वो अपने परिवार का गुजारा कर सके। लकड़हारा प्रतिदिन यहीं काम करता था।

एक दिन लकड़हारा जंगल में गया, उस जंगल में एक बड़ी नदी थी, जो बहुत तेज बह रही थी। उस नदी के किनारे एक बड़ा सा पेड़ था, जिसमें कई सुखी लकड़ियाँ थीं।

वह लकड़हारा उस पेड़ पर अपनी ‘लकड़ी की कुल्हाड़ी’ लेकर चढ़ा और सुखी लकड़ियाँ काटने लगा। लकड़ियाँ काटते-काटते अचानक उसके हाथ से वह कुल्हाड़ी छुट गई और नदी में गिर गई।

उसके बाद वह लकड़हारा पेड़ से नीचे उतर गया और उस कुल्हाड़ी को ढूंढने लगा, लेकिन कुल्हाड़ी नहीं मिली। दरअसल नदी भी बहुत तेज बह रही थी, जिस वजह से कुल्हाड़ी को नदी में ढूंढ पाना भी मुमकीन नहीं था।

अपनी कुल्हाड़ी खोकर लकड़हारा नदी के किनारे बैठ गया और रोने लगा। तब जलदेवता ने उनके रोने की आवाज सुनी तो जलदेवता वहां प्रकट हुए और लकड़हारे से पूछा कि तुम रो क्यों रहे हो?

तब लकड़हारे ने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई, तो जलदेवता को उस पर दया आ गई। उसके बाद जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये। लकड़हारे ने कहा कि यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।

फिर से जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये। लकड़हारे ने फिर से कहा कि यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।

उसके बाद फिर से जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक लकड़ी की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये, उस कुल्हाड़ी को देख कर लकड़हारा बहुत खुश हुआ और उसने कहा कि यही मेरी कुल्हाड़ी है।

लकड़हारे की इमानदारी देख कर जलदेवता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने लकड़हारे को उसकी लकड़ी की कुल्हाड़ी सहित चांदी और सोने की दोनों ही कुल्हाड़ियाँ भेट दे दी।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को हमेशा इमानदारी से ही अपना काम करना चाहिए, क्योंकि ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है।

 

झूठा लड़का और भेड़िया की कहानी: Moral short stories hindi main

एक गाँव में दगडू नाम का एक लड़का रह रहा था, जिसके पास 5-6 भेड़-बकरियां थे। वह गाँव के पास की एक पहाड़ी पर अपने भेड़-बकरियां चराता था। उस पहाड़ी के नीचे दगडू का गाँव बसा हुआ था।

गाँव के सारे लोग अपने काम-काज में लगे रहते थे। एक दिन दगडू ने उन्हें बेवकूफ बनाने का सोचा, ताकि उसे मजा आए। उस दिन दगडू अपने सभी भेड़-बकरियां लेकर पहाड़ी पर चराने गया और कुछ ही देर में उसने लोगो को बेवकूफ बनाने के लिए जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया कि भेड़िया आया, भेड़िया आया।

लोग ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ ये सुनकर पहाड़ी के ओर लाठी और डंडे लेकर दौड़ते हुए आए, ताकि वे दगडू के भेड़-बकरियों को भेड़िए से बचा सके और भेड़िए को वहां से भगा सके।

जब वे लोग पहाड़ी पर आए तो उन्हें वहां कोई भेड़िया नहीं दिखा और भेड़-बकरियां आराम से चर रहे थे। जब लोगो ने दगडू से पूछा कि कहाँ है भेड़िया? तो दगडू बोला.. आप लोगो को आते देख भेड़िया भाग गया।

‘भेड़िया भाग गया’ ये सुनकर लोग भी वहां से जाने लगे, लेकिन दगडू मन ही मन में बोल रहा था कि मैंने लोगो को बेवकूफ बना दिया, आज तो मजा ही आ गया। कल फिर से लोगों को बेवकूफ बनाऊंगा, यह कहकर जोर-जोर से हसने लगा।

दुसरे दिन फिर दगडू अपने सभी भेड़-बकरियां लेकर पहाड़ी पर चराने गया और कुछ ही देर में उसने लोगो को बेवकूफ बनाने के लिए जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया कि भेड़िया आया, भेड़िया आया।

‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ ये सुनकर लोग फिर से पहाड़ी के ओर लाठी और डंडे लेकर दौड़ते हुए आए, लेकिन वहां उन्हें कोई भेड़िया नहीं दिखा और भेड़-बकरियां आराम से चर रहे थे।

उसके बाद लोगो ने दगडू से पूछा कि कहाँ है भेड़िया? तो दगडू बोला.. आप लोगो को आते देख भेड़िया भाग गया। लोगो ने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन वहां से जाते हुए सभी लोग आपस में यह बात कर रहे थे कि यहाँ कोई भेड़िया नहीं आया होगा, यह बस हमे बेवकूफ बना रहा है।

उसके बाद सभी लोगो ने निर्णय लिया कि आज के बाद कोई भी दगडू के बातो में नहीं आएगा, यह बस हमे बेवकूफ बनाने के लिए ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ चिल्लाता है।

लोगो के जाने बाद दगडू जोर जोर से हसने लगा और कहने लगा कि आज तो डबल मजा आ गया। कितने बेवकूफ लोग है जो आज भी नहीं समझ पाए कि मै इन्हें बेवकूफ बना रहा हूँ।

उसके बाद तीसरे दिन फिर दगडू अपने सभी भेड़-बकरियां लेकर पहाड़ी पर चराने जाता है। लेकिन वह सोचता है कि आज यदि मै ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ चिल्लाऊंगा तो लोग समझ जायेंगे कि मै उन्हें बेवकूफ बना रहा हूँ, आज नही कल उन्हें बेवकूफ बनाते है।

अगले दिन फिर से दगडू अपनी सारी भेड़-बकरियों को पहाड़ी पर चराने के लिए ले जाता है और लोगो को बेवकूफ बनाने के बारे में सोच ही रहा होता है कि इतने में सच में भेड़िया आता है।

‘भेड़िया’ को देखकर दगडू के पैरो के नीचे से जमीन खिशक जाती है, तब वो डर के मारे एक पेड़ पर चढ़ जाता है और जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगता है कि भेड़िया आया-भेड़िया आया, कोई मेरी मेदद्द करो।

लेकिन इस बार कोई भी व्यक्ति दगडू की बातों नहीं आना चाहता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि दगडू आज फिर हमें बेवकूफ बनाना चाहता है। दगडू कई बार ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ ‘कोई मेरी मेदद्द करो’ ऐसे चीखता है, चिल्लाता है।

लेकिन दगडू की मदद के लिए कोई नहीं आता है। इधर भेड़िया एक एक करके दगडू के सारे भेड़-बकरियों को मारकर खा जाता है और दगडू पेड़ पर बैठे-बैठे रोता रहता है।

जब बहुत रात तक दगडू घर नहीं आया, तो गाँव वालें उसे ढूँढते हुए पहाड़ी पर पहुँचे, वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि दगडू पेड़ पर बैठा रो रहा था।

गाँव वालों ने किसी तरह दगडू को पेड़ से उतारा, उस दिन दगडू की जान तो बच गई, लेकिन उसकी प्यारी भेड़-बकरियां भेड़िए का शिकार बन चुकी थीं।

दगडू को समझ में आ गया कि गाँव वाले उसकी मदद के लिए क्यों नहीं आए थे। उसके बाद दगडू ने रोते हुए अपने गाँव वालो से माफी मांगी और कहा कि मैंने अपनी ही गलती के कारण अपनी सारी भेड़-बकरियां खो दी हैं।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलना बहुत बुरी बात है। झूठ बोलने की वजह से हम लोगों का विश्वास खोने लगते हैं और समय आने पर कोई हमारी मदद नहीं करता।

 

लोमड़ी और अंगूर की कहानी: Good short moral stories in hindi

गाँव के पास एक छोटा सा जंगल था। उस जंगल में लोमड़ी रहती थी। एक दिन लोमड़ी को बहुत ही जोरो से भूख लगी। लोमड़ी ने सारा जंगल छान मारा, लेकिन उसे खाने के लिए कुछ नहीं मिला।

लोमड़ी भूख से बहुत ही परेशान थी और बार बार पानी पीये जा रही थी। तब उसने सोचा कि पास के गाँव में जाना चाहिए, क्योंकि उसे वहां कुछ न कुछ खाने को जरुर मिल जाएगा।

फिर वह पास के एक गाँव में पहुँची, वह प्रत्येक घर के पास से यह देखते हुए जा रही थी कि उसे कुछ न कुछ खाने को जरुर मिल जाएगा। तब उसे एक घर में छत पर लटके अंगूर दिखाई दिए।

अंगूर काफी रसीले दिखाई दे रहे थे, अंगूर देख लोमड़ी में मुह में पानी आ गया। लोमड़ी मन ही मन में यह सोच रही थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, ये अंगूर तो मै जरुर खाऊँगी।

अंगूर खाने के लिए जब वह उसके पास गई तो उसने देखा कि अंगूर उससे कुछ फुट के ऊंचाई पर थे, जो छत पर लटक रहे थे। अब लोमड़ी को वह अंगूर खाने के लिए काफी जोर से छलांग लगानी पड़ेगी।

लोमड़ी ने यह सोच लिया था कि वह यह अंगूर खाकर ही यहाँ से जाउंगी, क्योंकि ऐसे अंगूर उसे कहीं पर भी नहीं मिलेंगे और वो इसके लिए कितनी भी बार छलांग लगाने के लिए तैयार थी।

अब लोमड़ी को रहा नहीं जा रहा था, तब लोमड़ी ने जोर से अंगूर की ओर छलांग लगाई पर वो अंगूर तक पहुँच नहीं पाई। उसके बाद फिर से लोमड़ी ने अंगूर की ओर छलांग लगाई, पर इस बार वो चुक गई।

लोमड़ी ने अंगूर खाने के लिए बार बार छलांग लगानी शुरू कर दी, पर वो हर बार नाकाम हो रही थी, फिर भी उसका प्रयास जारी ही था। जब वो छलांग लगा लगाकर थक गई, तब वो वहां से चली गई। जब वो जंगल पहुंची, तब वह अपने मन ही मन में कहने लगी कि अंगूर खाने का कोई मतलब नहीं था, क्योंकि अंगूर खट्टे थे।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जो हमारे पास नहीं है उसका कभी भी तिरस्कार न करें, क्योंकि कुछ भी आसानी से नहीं मिलता है।

 

खरगोश और कछुए की एक रोचक कहानी: Rabbit and tortoise short stories in hindi

एक जंगल में एक खरगोश रहता था, जिसे अपने तेज दौड़ने पर बहुत घमंड था। दूसरे जानवरों के बीच वो हमेशा खुद की तारीफ करता और कई बार दूसरे का मजाक भी उड़ाता था।

एक बार उसे एक कछुआ जंगल में घूमता-फिरता दिखा। कछुए की धीर चाल होने के बावजूद भी खरगोश ने कछुए को दौड़ के लिए चुनौती दे दी। कछुए को पता था कि वो इस मुकाबले में हारने वाला है, फिर भी कछुए ने उसकी चुनौती मान ली।

क्योंकि कई दिनों से खरगोश उसके धीर चाल पर हंस रहा था। यह बात जंगल के सभी जानवरों पता चल गई कि खरगोश और कछुए की दौड़ होने वाली है, इसलिए सभी जानवर खरगोश और कछुए की दौड़ देखने के लिए जमा हो गए।

दौड़ शुरू हो गई, इस मुकाबले में एम्पायर लोमड़ी थी, जैसे ही लोमड़ी ने झंडी हिलाई, दोनों ने दौड़ना शुरू किया। खरगोश तेजी से दौड़ने लगा और वो कछुए से कहीं आगे निकल गया।

आधे रास्ते तक पहुँचने पर जब खरगोश पीछे मुड़कर देखा, तो कछुआ दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहा था। क्योंकि कछुआ अपनी धीमी गति से दौड़ते हुए आ रहा था, इसलिए कछुआ दूर दूर तक कहीं नजर नहीं आ रहा था।

तब खरगोश ने सोचा कि थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ, क्योंकि यहाँ तक कछुए को आने बहुत समय लग जाएगा। तब वह एक पेड़ की छाया में आराम करने लगा।

लेकिन थकान के कारण खरगोश को जल्द ही नींद आ गई और उसकी नींद तब खुली जब कछुआ दौड़ जीत चूका था। कछुआ कब उसके पास से गुजरा और दौड़ जीत गया, यह खरगोश को पता ही नहीं चला।

कछुआ अपनी धीमी गति से दौड़ जीतकर बहुत खुश था, लेकिन उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, पर लोमड़ी ने कछुए को बताया कि तुम दौड़ जीत गए हो।

उसके बाद सभी जानवरों ने एक एक करके कछुए को जीत की बधाई दी। खरगोश चुपचाप यह सब देख रहा था, उसके चेहरे पर पानी नहीं था, वह शर्म से लाल था। ऐसा लग रहा था कि खरगोश ने अपना सबक सीख लिया है, क्योंकि वह किसी से कुछ बोल पाया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जो धैर्य और मेहनत से काम करता है, उसकी जीत पक्की होती है और जिन्हें खुद पर या अपने किए हुए कार्य पर घमंड होता है, उनका घमंड कभी न कभी टूटता जरूर है।

 

शेर और ज्ञानी बिल्ली की कहानी: Lion and cat short stories in hindi

एक जंगल में एक बहुत ही ज्ञानी बिल्ली रहती थी, जिसकी चर्चा दूर-दूर तक थी। उस बिल्ली को सभी प्राणी मौसी कहकर बुलाते थे और हर कोई उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहता था।

वह एक प्रकार से टीचर की तरह फ्री में प्राणियों को पढ़ाती थी। एक दिन जगल का राजा शेर उस ज्ञानी बिल्ली के पास आया और उसने उससे शिक्षा प्राप्त करने की मांग की।

ज्ञानी बिल्ली निस्वार्थ भाव से सबको पढ़ाती थी, उसी तरह उसने शेर को भी मना नहीं किया और वो उसे भी पढ़ाने के लिए राजी हो गई। उसके बाद शेर प्रतिदिन उस ज्ञानी बिल्ली के पास शिक्षा प्राप्त करने के लिए आने लगा।

एक महिना बीत गया, ज्ञानी बिल्ली ने शेर को लगातार 30 दिन तक पढाया। ज्ञानी बिल्ली शेर को जितना पढ़ाना चाहती थी, वो पढ़ा चुकी थी। अब वो शेर को इसके आगे नहीं पढ़ाना चाहती थी।

30 दिन पुरे होने पर ज्ञानी बिल्ली ने शेर को कहा कि अब आपकी पढाई पूरी हो गई है, अब आपको यहाँ आने की जरुरत नहीं है, अब आप सब कुछ सीख गए हो, जो मै सिखाना चाहती थी।

शेर यह बात सुनकर बहुत खुश हुआ, उसने ज्ञानी बिल्ली से कहा.. क्या मै सब कुछ सीख गया हूँ। ज्ञानी बिल्ली बोली.. हाँ आपको जो मुझे पढ़ाना चाहिए था, वो मैंने आपको पढ़ा लिया है, अब आप अपनी आगे की जिन्दगी आसानी से जी सकते है।

शेर ने जोर से एक दहाड़ लगाई, जिससे बेचारी ज्ञानी बिल्ली डर गई। शेर बोला.. आपने जो मुझे शिक्षा दी है, क्या मै इसका प्रयोग आज से कर सकता हूँ। ज्ञानी बिल्ली बोली.. हाँ, पर जब इसकी जरुरत हो, तब ही प्रयोग करना।

शेर बोला.. ठीक है, पर मै इसका प्रयोग सबसे पहले आप पर ही करना चाहता हूँ। ज्ञानी बिल्ली बोली.. पागल हो क्या? मै तुम्हारी गुरु हूँ और तुम ऐसे मुझ पर प्रयोग नहीं कर सकते।

शेर का इरादा नेक नहीं था, शेर के मन में क्या चल रहा था, यह ज्ञानी बिल्ली जान चुकी थी। जैसे ही शेर उस पर झपट पड़ा, वैसे ही ज्ञानी बिल्ली दौड़ते हुए गई और एक बड़े से पेड़ पर चढ़ गई।

शेर बोला.. आपने तो मुझे पेड़ पर चढ़ना सिखाया ही नहीं। ज्ञानी बिल्ली बोली.. मुर्ख, अगर तुझे पेड़ पर चढ़ना सिखाती, तो आज तू मुझे ही मार कर खा जाता।

तूने अपने ही गुरु पर हमला कर गुरु जाति का अपमान किया है, भविष्य में तुझे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, यह मेरा तुझे श्राप है। चल, अब तु मेरी नज़र से दूर हो जा और फिर कभी यहाँ नज़र नही आना, नहीं तो मैं तुझे कोई और श्राप दे दूंगी। यह सुनकर शेर दुम दबाकर भाग गया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी पर भी आंख मूंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए, यहाँ लोग अपने गुरु तक को नहीं छोड़ते है, तो वे आपको कैसे बख्शेंगे।

 

मूर्ख गधे की कहानी: Simple short motivation stories in hindi

एक गाँव में नमक का एक व्यापारी था। उसके पास में एक गधा था। व्यापारी प्रतिदिन गधे की पीठ पर नमक की बोरी रखकर नमक बेचने बाजार जाता था। व्यापारी और गधे को बाजार जाने के लिए एक नदी पार करनी पड़ती थी।

नदी पार करते समय एक दिन गधा अचानक नदी में गिर जाता है, जिससे उसकी पीठ पर रखी नमक की बोरी भी पानी में गिर जाती है और नमक पानी में घुल जाता है।

नमक की बोरी से नमक पानी में घुलने के कारण नमक की बोरी हल्की हो जाती है, जिससे गधा बहुत खुश हो जाता है, क्योंकि अब उसे ज्यादा वजन नहीं उठाना पड़ेगा।

उसके बाद गधा हर दिन नदी में गिरने का नाटक करता है और नमक की बोरी भी गिरा देता है, जिससे नमक की बोरी से नमक पानी में घुल जाता है और जिसके कारण नमक के व्यापारी को हर दिन नुकसान उठाना पड़ता है।

नमक के व्यापारी को गधे की यह हरकत समझ में आ जाती है, उसके बाद वह उसे सबक सिखाने के लिए उसकी पीठ पर रुई (कपास) की बोरी रखकर बाजार के लिए निकल जाता है।

आज भी गधा नदी पार करते समय जान बुझकर नदी में गिर जाता है और कपास की बोरी को भी नदी में गिरा देता है, जिससे कपास पानी में पूरी तरह से भीग जाता है और कपास का वजन पहले से चार गुना बढ़ जाता है।

जिससे गधे की करतूत गधे पर ही भारी पड़ जाती है और उसे पहले से चार गुना वजन उठाकर बाजार तक ले जाना पड़ता है, जिससे गधे को असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि भाग्य हमेशा साथ नहीं देता, हमें कभी-कभी अपनी बुद्धि का भी इस्तेमाल करना चाहिए।

 

लालची रानी की कहानी: Short story in hindi with moral

एक शहर में एक रानी रहती थी, जो धन-धान्य से भरपूर होने के साथ-साथ बहुत लालची भी थी। उसे सोना-चाँदी बहुत पसंद था लेकिन वह उससे ज्यादा अपनी लड़की से बहुत प्यार करती थी।

रानी का राजमहल बहुत बड़ा था। राजमहल के बाजु में एक बड़ा सा बगीचा था। रानी रोजाना शाम के समय उस बगीचे में अकेली ही टहलने जाती थी।

हर दिन की तरह, जब रानी उस बगीचे में अकेले टहलने जाती है, तो उसे वहाँ एक गोल्डन परी दिखाई देती है, जो एक बड़े गुलाब के पेड़ के पास खड़ी होती है। परी की सुन्दरता देख रानी मोहित हो जाती है।

उसी समय जोरो से हवा चलने लगती है, जिससे उसके सुनहरे लंबे बाल उस गुलाब के पेड़ में फस जाते है। रानी उसे देखते ही दौड़ते हुए उसके पास जाती है और उसके सुनहरे लंबे बाल उस गुलाब के पेड़ से निकालने में मदद करती है।

यह देखकर गोल्डन परी खुश हो जाती है और रानी को धन्यवाद देती है। रानी कहती है.. आप बहुत सुंदर हो, आपके हर अंग में सोना झलकता है, क्या मुझ पर भी थोड़ी सी कृपा कर सकते हो।

गोल्डन परी कहती है.. बताइए रानी आप क्या चाहती है? रानी कहती है.. जिसे मै छूऊ वह सब सोना बन जाए, तब गोल्डन परी रानी को यह वरदान देती है कि रानी जिस भी चीज छूएगी, वह सब सोना बन जाएगा।

रानी बगीचे से जाते हुए कई चीजो को छूते हुए जाती है, वह जिस चीज को भी छूती है, वह सब सोना बनता जाता है। उसके बाद वह ख़ुशी से भागते भागते सीधे अपने महल में जाती है और ख़ुशी से अपने लड़की को गले लगा लेती है।

जैसे ही रानी अपने लड़की को छूती है तो उसकी लड़की सोने की मूर्ति बन जाती है। उसके बाद रानी रोते हुए, दौड़ते-दौड़ते बगीचे में वापस आती है और गोल्डन परी, गोल्डन परी कहकर जोर जोर से आवाज देती है, लेकिन गोल्डन परी वहां से पहले ही जा चुकी होती है।

उसके बाद रानी को गोल्डन परी का वरदान याद आता है और उसको अपनी गलती का भी एहसास होता है कि उसकी लालच ने उससे उसकी प्यारी लड़की छीन ली।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि जरूरत से ज्यादा लालच हमे विनाश की तरफ ले जाता है। रानी ने जरूरत से ज्यादा लालच में अपनी जान से प्यारी लड़की को खो दिया।

 

दो मेंढकों की कहानी: Very short stories in hindi with moral

एक बार की बात है, जब मेंढकों का एक दल टहलने के लिए निकला था तो अनजाने में दो मेंढक एक गहरे गड्ढे में गिर पड़े। बाकी मेंढक उन दो मेंढकों के लिए बहुत चिंतित थे।

गड्ढा बहुत गहरा था, उनका वहां से निकलना बहुत मुश्किल था। दोनों मेंढक लगातार उस गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे पर हर बार नाकाम हो रहे थे।

यह देख बाकि मेंढक कहने लगे कि गड्ढा बहुत गहरा है, गड्ढे से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है और कोशिश करने का भी कोई मतलब नहीं है।

बाकी के मेंढक उन दोनो मेंढकों को हिम्मत देने की बजाय उनकी हिम्मत तोड़ रहे थे। जिसके परिणामस्वरूप एक मेंढक ने अपनी हिम्मत खो दी और वहीँ पर उसकी मृत्यु हो गई।

जबकि दूसरा मेंढक लगातार बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था और उसने अंत इतनी ऊँची छलांग लगाई की वह गड्ढे से बाहर निकल ही गया। ऊपर खड़े सभी मेंढक यह देखकर चौंक गए कि इसने यह कैसे किया।

पहला मेंढक बाकी मेंढको की बाते सुनकर अपनी हिम्मत खो चूका था और उस डर से उसकी मौत हो गई। जबकि यह मेंढक बहरा था, इसने किसी की कुछ नहीं सुनी और लगातार कोशिश करता रहा और गढ्ढे से बाहर निकल गया।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि दूसरों की राय आपको तभी प्रभावित करेगी जब आप उन पर विश्वास करेंगे, बेहतर इसी में है कि आप खुद पर ज्यादा विश्वास करे, यक़ीनन सफलता आपके कदम चूमेगी।

 

लोमड़ी और सारस की कहानी: Inspirational short moral stories in hindi

लोमड़ी और सारस दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। लेकिन लोमड़ी बहुत ही स्वार्थी और चालाक थी। एक दिन लोमड़ी ने अपने घर सारस को रात के खाने के लिए आमंत्रित किया, ताकि वो उसका मजाक उड़ा सके।

सारस को तरह तरह का खाना खाने का बहुत शौक था, जिसके कारण जब उसे खाने के लिए आमंत्रित किया गया तो वह बहुत खुश हुआ और वह मना ही नहीं कर पाया।

उसके बाद वह दिए गए समय पर लोमड़ी के घर पहुंचा और अपनी लंबी चोंच से दरवाजा खटखटाया। लोमड़ी ने जैसे ही दरवाजे पर सारस को देखा तो वह बहुत खुश हो गई, क्योंकि वो आज सारस की मजा लेना चाहती थी।

उसके बाद उसने सारस को अंदर आने के लिए कहा, फिर वो दोनों खाना खाने बैठ गए। लोमड़ी ने जान बूझकर सूप एक प्लेट में परोसा, उसे पता था कि सारस प्लेट में से सूप को नहीं पी सकता।

सारस को सूप न पीता देख लोमड़ी बहुत खुश हुई और झूठी चिंता दिखाते हुए सारस से पूछने लगी कि क्या बात है दोस्त को सूप पसंद नहीं आया? सारस ने कहा नहीं दोस्त, यह सूप तो बहुत ही स्वादिष्ट है।

सारस समझ गया था कि लोमड़ी ने जान बूझकर सूप प्लेट में परोसा है ताकि मै इसे पी न सकूँ, लेकिन सारस बिल्कुल चुप रहा और उसने विनम्रता से व्यवहार किया। 

उसके बाद सारस ने भी लोमड़ी को सबक सिखाने की सोची और उसने भी दुसरे दिन लोमड़ी को खाने के लिए आमंत्रित किया। लोमड़ी सटीक समय पर सारस के घर पहुंच गई और फिर वो दोनों खाना खाने बैठ गए।

सारस ने सूप को सुराही में परोसा। सुराही का मुंह इतना छोटा था कि उसमें बस चोंच ही अंदर जा सकती थी। लोमड़ी पूरा टाइम सुराही और सारस को सूप पीते देखती रही, और सारस ने अपना सूप पूरा पी लिया।

आज लोमड़ी सूप की एक बूंद भी नहीं पी सकी और उसे सारस के घर से भूखा लौटना पड़ा। लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हो गया कि अगर मैंने सारस को अपने घर में भूखा न रखा होता तो आज मैं भी उसके घर भूखी नहीं रहती।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है।

 

बारहसिंगा हिरण की कहानी: Very short hindi story

एक जंगल में एक बारहसिंगा हिरण रहता था। वह बार बार तालाब के पास केवल इसलिए जाता था, क्योंकि वह तालाब के पानी में अपने सुंदर सींगो को देख सके।

वह अपने सुंदर सींगो को देखकर बहुत खुश हो जाता था, इसलिए वो बार बार तालाब के पास जाता और अपनी सींगो को देखता था। लेकिन जब भी वह अपनी पतली टांगो को देखता तो बहुत दु:खी हो जाता था।

उसे लगता था कि भगवान ने सबकी टांगे अच्छी और मजबूत बनाई है, जबकि मेरी ही टांगे पतली बनाई है। इसलिए जब भी वो अपने टांगो को देखता तो भगवान को भला-बुरा जरुर कहता था।

एक बार कुछ शिकारी कुत्ते जंगल में आते है और बारहसिंगा हिरण का पीछा करते है, यह देख बारहसिंगा हिरण जोर जोर से भागने लगता है और जोर जोर से भागने में उसकी पतली टांगे ही उसकी मदद करती है।

लेकिन भागते भागते अचानक उसकी सींगे कुछ टहनियों के बीच फस जाती है, जिससे वह शिकारी कुत्तो के हाथ लग जाता है। जिससे बाद उसे याद आता है कि जोर जोर से भागने में मेरी पतली टांगो ने ही मेरी मदद की है, जबकि मेरे सुंदर सींगो ने मुझे कुत्तो के हवाले कर दिया है।

कुत्तो ने काट काटकर उसे घायल कर दिया था, बड़े मुस्किल से एक फ़ॉरेस्ट गार्ड ने उसकी जान बचाई। उसके बाद उसने कभी भी अपनी पतली टांगो के लिए भगवान को भला-बुरा नहीं कहा।

क्योंकि वह जान चूका था कि यहीं पतली टांगे उसे मुसीबत के समय जोर जोर से भागने में उसकी मदद करती है। उसके बाद उसने भगवान से अपनी गलती के लिए (भला-बुरा कहने के लिए) माफ़ी भी माँगी।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी चीज उसके गुणों के कारण ही सुंदर होती है न कि उसके सुंदर दिखावे के कारण।

 

समझदार गधे की कहानी: Best short moral stories in hindi

एक गाँव में एक कुम्हार (मिट्ठी के चीजे बनाने वाला) रहता था। उसके पास एक गधा था जो उसके पास काफी सालो से रह रहा था। कुम्हार उस गधे से मिट्ठी ढोने का काम करवाता था।

रोज रोज यहीं काम करके वह गधा काफी कमजोर हो गया था और वो बुढा भी हो गया था। अब वो मिट्ठी भी नहीं उठा पाता था और दर्द के मारे ची-बौ-ची-बौ करके दिन-रात चिल्लाते रहता था।

गाँववाले उसके इस आवाज काफी परेशान हो चुके थे। एक दिन सभी गाँववाले उस कुम्हार के घर आए और बोले कि इस गधे की चिल्लाने की आवाज से हम रात में ढंग से न सो पाते है और न ही दिन में आराम कर पाते है।

या तो तुम इस गधे को मार दो या इसे कहीं छोड़ कर आ जाओ। कुम्हार बोला यह गधा मेरे यहाँ काफी सालो से मिट्ठी ढोता आया है, मै इसे कैसे मार सकता हूँ और इसे मै कहाँ छोड़ आऊँ, क्योंकि जंगल भी यहाँ से 50 किलोमीटर से ज्यादा दूर है।

एक काम करते गावं के बाहर एक सुखा कुंवा है, वहां इसे डाल देते है, वहां ये अपने आप मर जाएगा। सभी गाँव वालो ने कुम्हार की इस काम में मदद की और उस गधे को एक सूखे कुंवे में डाल दिया गया।

वहां गधा उस कुंवे में भूखा प्यासा था, जिसके कारण वो भूख के मारे पहले से ज्यादा जोर जोर से चिल्लाने लगा। गधे की चिल्लाने की वह आवाज सुनकर गाँववाले फिर से परेशान हो गए।

उसके बाद उन्होंने गधे को चुप कराने के लिए एक योजना बनाई। योजना ये थी कि गाँव का सभी कूड़ा कचरा उन्होंने उस कुंवे में डालने का सोचा, जिससे गधा उस कचरे के नीचे दब कर मर जाएगा।

उसके एक-एक करके सभी गाँववाले हर दिन अपने घर का कूड़ा कचरा उस कुंवे में डालने लगे। गधा बहुत समझदार था, जब भी उस पर कोई कूड़ा कचरा डालता था, तो वह अपनी जोर से पीठ हिलाकर उस कचरे को नीचे गिरा देता था।

जिसमे से वो खाने की चीजे ढूंढकर वो खा जाता था और कचरे के ऊपर खड़ा हो जाता था। ऐसे ही कुछ दिन चलता रहा, गधा वह खाना खाकर हष्ट पुष्ट हो गया था।

कुछ दिनों के बाद कुआँ भर गया और गधा कूड़ा-कचरा नीचे दबा-दबा कर ऊपर आ गया था। जैसे ही उसे लगा कि अब वह कुएं से बाहर निकल सकता है, उसने कोशिश की और वह कुएं से बाहर निकल आया। कुएं से बाहर निकलते ही वह सीधे जंगल की ओर भागा और इस तरह गधे ने अपनी जान बचा ली।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे जीवन ऐसे कई नकारात्मक घटनाएं होते रहते है, जिसके बाद हमें दबाने की कोशिश की जाती है, जिससे हमें बड़ी ही समझदारी के साथ ऊपर उठना और आगे बढ़ना होता है।

 

संगति का असर: Best moral short stories in hindi

यह कहानी राम और श्याम दोनों भाईयों की है। दोनों भाई एक ही कक्षा में पढ़ते थे। राम और श्याम दोनों ही पढाई में अव्वल थे। 10वीं और 11वीं कक्षा में राम और श्याम दोनों ने ही टॉप किया था।

लेकिन 12वीं कक्षा में श्याम ठीक से पढाई नहीं कर पाता था, क्योंकि वो गलत संगति में पड़ गया था। 12वीं कक्षा में श्याम के ऐसे दोस्त बन चुके थे, जो पढाई में बिल्कुल जीरो थे, जिनकी पढाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी।

राम ने श्याम से कई बार कहा है कि ऐसे दोस्तों के साथ मत रहो, जिन्हें पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है, लेकिन श्याम ने राम की एक नहीं सुनी।

राम और श्याम के पिता अपने दोनों बेटो के बारे में सोसाइटी में बड़ी-बड़ी बातें करते थे। क्योंकि उन्हें पता था कि उनके दोनों बेटे पढाई में बहुत अच्छे है, और वो उनका नाम ऊँचा करेंगे।

लेकिन जब 12वीं कक्षा का रिजल्ट आता है तो राम अच्छे अंको के पास हो जाता है, जबकि श्याम परीक्षा में फेल हो जाता है। यह देख कर उसके पिता बुरी तरह टूट जाते है।

सोसाइटी में उनका नाम ख़राब हो जाता है, लोग तरह तरह के बातें करने लगते है। यह देख श्याम को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है और वह अपने आपको कोसते रहता है कि यदि मैंने राम की बात सुनी होती, तो आज मेरे पिता को ये दिन नहीं देखने पड़ते।

उसके बाद वह अगले साल फिर से 12वीं की परीक्षा के लिए फॉर्म भरता है और उन दोस्तों का साथ छोड़ देता है, जिन्हें पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है।

उसके बाद वह ऐसे छात्रों के साथ रहने लगता है जो पढ़ाई में बहुत अच्छे होते हैं। इसके अलावा इस बार वह मन लगाकर पढ़ाई करता है और 12वीं की परीक्षा देता है और अच्छे अंकों से परीक्षा भी पास करता है।

इस कहानी से क्या सीख मिलती है- यह कहानी हमें सिखाती है कि संगत के साथ रंगत आ जाती है। जैसी संगति वैसा ही परिणाम।

 

लालची भाई और उसकी पत्नी (Short stories in hindi)

एक गाँव में ‘राज’ और ‘धनराज’ नाम के दो भाई रहते थे। वे दोनों अलग-अलग माताओं के बेटे थे। उसी तरह दोनों का स्वभाव भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग था। छोटा भाई बहुत ही शांत स्वभाव का था और बड़ा भाई गुसैल और लालची था। बड़े भाई (राज) ने धोखे से अपने पिता की जायदाद अपने नाम कर ली थी।

उसने अपने पिता से कहा था कि पिताजी आपकी हालत बहुत ही गंभीर है, कभी भी, कुछ भी हो सकता है। मै बडा हूँ इसलिए आप पुरी जायजाद मेरे नाम कर दिजीये। जब धनराज की शादी होगी, तब मैं आधी जायजाद उसके नाम कर दूंगा। उसके पिता का उस पर पुरा भरोसा था कि राज कभी किसी से धोका नही करेगा। इसलिये उसके पिताजी ने अपनी पुरी जायदाद राज के नाम पर दिया था।

राज की पत्नी बहुत ही लालची थी। वह अपनी मीठी मीठी बातो से खेतो का पूरा काम धनराज के हातो से करा लेती थी। फिर कुछ दिनो बाद राज-धनराज के पिताजी की मुत्यू हो गई है। उसके बाद राज की पत्नी धनराज से झगडे करने के बहाने खोजती रहती थी। धनराज अपने बड़े भाई राज और उसकी पत्नी से बहुत परेशान हो गया था।

एक दिन उन दोनो से तंग आकर धनराज ने अलग होने का फैसला लिया और अपने बड़े भाई से आधी जायदाद मांगी। तब राज ने कहा, कि कौन सी जायदाद.. पिताजी ने जायदाद पर बहुत सारा कर्जा लिया था। मैने अपने वर्षो से कमाए हुए पैसे से उनका पूरा कर्जा भरा है। अब वो पूरी जायदाद मेरी है, तेरा इसमें कुछ भी नहीं है।

यह सुनते ही धनराज के आँखों में आंसू आ जाते है और वो रोते हुए वहां से दुसरे गाव चला जाता है। उसे उस गाव में एक बहुत अच्छा जमींदार मिलता है। जमींदार धनराज को अपने घर में खेती का काम देता है। धनराज की इमानदारी और खुद्दारी को देखकर जमीनदार की बेटी उसे पसंद करने लगती है। वो यह बात अपने पिताजी से कहती है, जमींदार भी धनराज को बेहद पसंद करता है।

तब जमींदार धनराज से अपनी बेटी की शादी कर देता है। दुसरे दिन जमींदार धनराज से कहता है कि.. बेटा मेरा कोई वारिस नही है। इसलिए मै अपनी पुरी जायदाद और अपनी बेटी तुम्हे दे रहा हुं, इसे अब तुम्हे ही संभालना है।

धनराज कहता है.. नहीं ससुर जी.. मै मेहनत से कमाने वाला इंसान हुं। इसलिए मै ये जायदाद नही ले सकता। जमींदार कहता है.. मैने पिछले जन्म में कोई पुण्य किया होंगा, जो मुझे इतना अच्छा जमाई मिला है।

उसके बाद धनराज एक दिन खेतों में काम करके खाना खाने के लिए एक पेड के नीचे बैठा था। उतने में भगवान एक भिकारी के रूप में आकर उसे कहते है.. हे भाई मै बहुत दिनो से भुका हुं, कुछ खाने को मिलेगा क्या? धनराज उसे अपना पुरा खाना दे देता है। तभी अचानक भगवान भिकारी के रूप से बाहर आते है और कहते है.. मै तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और तुम अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हो।

इसलिए मै तुमको एक बासुरी देता हूँ, जिसे बजाकर तुम जो भी मागोगे, वो तुम्हे मिल जाएगा। पर इसका गलत इस्तेमाल करने पर तुम्हे जो चीजे मिलेगी, वो सब गायब हो जाएगी। धनराज घर जाते ही यह सब बातें अपनी पत्नी को बताता है।

फिर वो कुछ ही दिनो में धनवान हो जाता है. धनराज अपने गाव जाकर अपने भाई के घर के सामने एक बहुत ही बडा घर बनाता है। उसका बड़ा भाई राज सोचता है कि धनराज इतनी जल्दी इतना धनवान कैसे बन गया?

फिर एक दिन राज आता है और धनराज से कहता है.. वाह भाई, तुम तो बहुत जल्दी धनवान हो गये हो। तब धनराज कहता है, सब भगवान की कृपा है।

लेकिन राज उसे बार बार पूछता है तब धनराज उसे पूरी कहानी बता देता है कि एक दिन मै खेतो में काम करके खाना खाने के लिये एक पेड़ के नीचे बैठा, उतने में एक आदमी आया और मुझसे खाना मागने लगा. तब मैने उसे पुरा खाना दे दिया. फिर अचानक उसने भगवान का रूप ले लिया. उसने मुझे एक बासुरी दी है और कहा कि तुम इसे बजाकर जो भी मागोगे, वो तुम्हे मिल जाएगा।

यह सुनकर राज बहुत खुश हो जाता है और अपने घर जाकर वो यह बात अपनी पत्नी को बताता है। तब वो उसे उस पेड़ के नीचे खाना लेकर जाने के लिए कहती है। उसके बाद वह खाना लेकर उस पेड के पास पहुच जाता है। कुछ ही देर में वहां एक भिकारी आता है और उसे कहता है कि.. हे भाई मै बहुत दिनो से भुका हुं, कुछ खाने के लिए दे दो। तब राज को लगता है कि धनराज ने तो आदमी बताया था, ये तो भिकारी है।

तब राज उसे कहता है कि.. तुम बहुत दिनो से भुके हो तो मै क्या करूँ.. यह कहकर वह उसे भगा देता है। फिर पेड के नीचे बैठे-बैठे उसे नींद लग जाती है। उसके बाद पेड पर से एक आम उसके सिर पर गिरता है और उसकी नींद खुल जाती है। फिर वो खाने का डिब्बा पकड़ता है, तो वो उसे हल्का महसूस होता है। फिर वो उसे खोलकर देखता है तो वो डब्बा पूरा खाली रहता है।

फिर अचानक पेड पर से एक बासुरी उसके सामने गिरती है और वो उस बासुरी को घर लेकर आता है। इस बारे में वो अपनी पत्नी को भी बताता है और वह दोनों बहुत खुश हो जाते है। उसके बाद वे तरह तरह के सपने देखते है कि हम ऐसा करेंगे, हम वैसा करेंगे, हम लक्षण से भी बड़ा घर बनायेंगे, आदि।

फिर दुसरे दिन सुबह जब राज वो बासुरी बजाता है तो उस बासुरी में से एक बहुत बड़ा जीन बाहर आता है। तब राज और उसकी पत्नी उसके सामने मुझे ये चाहिए, मुझे वो चाहिए, ऐसे तरह तरह के अपनी ख्वाइसे रखते है। जीन बोलता है.. तुम लोग मुझे आर्डर दे रहे हो, मै तुम्हारा गुलाम हूँ क्या?

उसके बाद वह राज और उसकी पत्नी को आर्डर पे आर्डर देकर उनसे दिन भर काम करवाते रहता है। अगर वह काम नहीं करते है तो वह उनकी पिटाई शुरू कर देता है। वह जीन उन दोनों को अपना गुलाम बना लेता है, वो जैसा बोलता है, ये दोनों वैसे करते है।

 

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है- इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि लालच बुरी बला है, जो लोग लालची और दूसरों के बारे में बुरा सोचने वाले होते है, उनके साथ अंत में बहुत बुरा ही होता है।


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