समझदार गधे की कहानी
एक गाँव में एक कुम्हार (मिट्ठी के चीजे बनाने वाला) रहता था। उसके पास एक गधा था जो उसके पास काफी सालो से रह रहा था। कुम्हार उस गधे से मिट्ठी ढोने का काम करवाता था।
रोज रोज यहीं काम करके वह गधा काफी कमजोर हो गया था और वो बुढा भी हो गया था। अब वो मिट्ठी भी नहीं उठा पाता था और दर्द के मारे ची-बौ-ची-बौ करके दिन-रात चिल्लाते रहता था।
गाँववाले उसके इस आवाज काफी परेशान हो चुके थे। एक दिन सभी गाँववाले उस कुम्हार के घर आए और बोले कि इस गधे की चिल्लाने की आवाज से हम रात में ढंग से न सो पाते है और न ही दिन में आराम कर पाते है।
या तो तुम इस गधे को मार दो या इसे कहीं छोड़ कर आ जाओ। कुम्हार बोला यह गधा मेरे यहाँ काफी सालो से मिट्ठी ढोता आया है, मै इसे कैसे मार सकता हूँ और इसे मै कहाँ छोड़ आऊँ, क्योंकि जंगल भी यहाँ से 50 किलोमीटर से ज्यादा दूर है।
एक काम करते गावं के बाहर एक सुखा कुंवा है, वहां इसे डाल देते है, वहां ये अपने आप मर जाएगा। सभी गाँव वालो ने कुम्हार की इस काम में मदद की और उस गधे को एक सूखे कुंवे में डाल दिया गया।
वहां गधा उस कुंवे में भूखा प्यासा था, जिसके कारण वो भूख के मारे पहले से ज्यादा जोर जोर से चिल्लाने लगा। गधे की चिल्लाने की वह आवाज सुनकर गाँववाले फिर से परेशान हो गए।
उसके बाद उन्होंने गधे को चुप कराने के लिए एक योजना बनाई। योजना ये थी कि गाँव का सभी कूड़ा कचरा उन्होंने उस कुंवे में डालने का सोचा, जिससे गधा उस कचरे के नीचे दब कर मर जाएगा।
उसके एक-एक करके सभी गाँववाले हर दिन अपने घर का कूड़ा कचरा उस कुंवे में डालने लगे। गधा बहुत समझदार था, जब भी उस पर कोई कूड़ा कचरा डालता था, तो वह अपनी जोर से पीठ हिलाकर उस कचरे को नीचे गिरा देता था।
जिसमे से वो खाने की चीजे ढूंढकर वो खा जाता था और कचरे के ऊपर खड़ा हो जाता था। ऐसे ही कुछ दिन चलता रहा, गधा वह खाना खाकर हष्ट पुष्ट हो गया था।
कुछ दिनों के बाद कुआँ भर गया और गधा कूड़ा-कचरा नीचे दबा-दबा कर ऊपर आ गया था। जैसे ही उसे लगा कि अब वह कुएं से बाहर निकल सकता है, उसने कोशिश की और वह कुएं से बाहर निकल आया। कुएं से बाहर निकलते ही वह सीधे जंगल की ओर भागा और इस तरह गधे ने अपनी जान बचा ली।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे जीवन ऐसे कई नकारात्मक घटनाएं होते रहते है, जिसके बाद हमें दबाने की कोशिश की जाती है, जिससे हमें बड़ी ही समझदारी के साथ ऊपर उठना और आगे बढ़ना होता है।