लोमड़ी और सारस की कहानी
लोमड़ी और सारस दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। लेकिन लोमड़ी बहुत ही स्वार्थी और चालाक थी। एक दिन लोमड़ी ने अपने घर सारस को रात के खाने के लिए आमंत्रित किया, ताकि वो उसका मजाक उड़ा सके।
सारस को तरह तरह का खाना खाने का बहुत शौक था, जिसके कारण जब उसे खाने के लिए आमंत्रित किया गया तो वह बहुत खुश हुआ और वह मना ही नहीं कर पाया।
उसके बाद वह दिए गए समय पर लोमड़ी के घर पहुंचा और अपनी लंबी चोंच से दरवाजा खटखटाया। लोमड़ी ने जैसे ही दरवाजे पर सारस को देखा तो वह बहुत खुश हो गई, क्योंकि वो आज सारस की मजा लेना चाहती थी।
उसके बाद उसने सारस को अंदर आने के लिए कहा, फिर वो दोनों खाना खाने बैठ गए। लोमड़ी ने जान बूझकर सूप एक प्लेट में परोसा, उसे पता था कि सारस प्लेट में से सूप को नहीं पी सकता।
सारस को सूप न पीता देख लोमड़ी बहुत खुश हुई और झूठी चिंता दिखाते हुए सारस से पूछने लगी कि क्या बात है दोस्त को सूप पसंद नहीं आया? सारस ने कहा नहीं दोस्त, यह सूप तो बहुत ही स्वादिष्ट है।
सारस समझ गया था कि लोमड़ी ने जान बूझकर सूप प्लेट में परोसा है ताकि मै इसे पी न सकूँ, लेकिन सारस बिल्कुल चुप रहा और उसने विनम्रता से व्यवहार किया।
उसके बाद सारस ने भी लोमड़ी को सबक सिखाने की सोची और उसने भी दुसरे दिन लोमड़ी को खाने के लिए आमंत्रित किया। लोमड़ी सटीक समय पर सारस के घर पहुंच गई और फिर वो दोनों खाना खाने बैठ गए।
सारस ने सूप को सुराही में परोसा। सुराही का मुंह इतना छोटा था कि उसमें बस चोंच ही अंदर जा सकती थी। लोमड़ी पूरा टाइम सुराही और सारस को सूप पीते देखती रही, और सारस ने अपना सूप पूरा पी लिया।
आज लोमड़ी सूप की एक बूंद भी नहीं पी सकी और उसे सारस के घर से भूखा लौटना पड़ा। लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हो गया कि अगर मैंने सारस को अपने घर में भूखा न रखा होता तो आज मैं भी उसके घर भूखी नहीं रहती।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए, हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है।