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छत्रपति शिवाजी की सम्पूर्ण जीवन कहानी – Biography of shivaji maharaj in hindi

by Tricks King Leave a Comment

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छत्रपति शिवाजी की सम्पूर्ण जीवन कहानी, छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय, शिवाजी महाराज का शुरुवाती जीवन, युद्ध कौशल्य और इतिहास के रणनीतिकार शिवाजी महाराज की जीवनी. Biography of shivaji maharaj in hindi.

Biography of shivaji maharaj in hindi

छत्रपति शिवाजी की सम्पूर्ण जीवन कहानी – Biography of shivaji maharaj in hindi

आज हम आपको मराठा साम्राज्य के निर्माता “वीर छत्रपति शिवाजी महाराज” के बारे में संपूर्ण जानकारी देंने जा रहे है. हमें पूरी उम्मीद है कि यह जानकारी आपको काफी अच्छी लगेगी. तों आइये देर न करते हुए आगे बढते है और छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से जुड़ी सभी बातें जानते है.

शिवाजी महाराज एक महान योद्धा थे जिन्होंने हर परिस्थिति में अपने दुश्मनों का सामना बुद्धिमानी और चतुराई से किया और युद्ध में हर योद्धा को पलट जवाब दिया. शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक और राजा थे. वह एक बहादुर योद्धा थे. जिन्होंने अपनी रणनीति से अच्छे अच्छे योद्धाओं को पराजय कर दिया था.

छत्रपति शिवाजी ने अपने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के साथ कई लड़ाई जीती हैं, इसलिए उन्हें अच्छे रणनीतिकार भी कहा जाता है. आइये अब हम आगे जानते है शिवाजी महाराज के जन्म और शुरुवाती जीवन के बारे में.

 

शिवाजी महाराज का जन्म और शुरुवाती जीवन

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के शिवनेरी किले में हुआ था. उनके पिता, श्री शाहजी भोसले, जो एक मराठा सेनापति थे, और वह डेक्कन सल्तनत के लिए काम किया करते थे. शिवाजी महाराज के पिता हमेशा उनकी निष्ठां बदलते थे.

उस समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतों में थी. तीन राज्यों बीजापुर, अहमदनगर और गोलकोंडा के कारण, शाहजी तीन राज्यों के बीच अपनी अखंडता को बदलते थे. लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी जागीर पुणे में रखी और उनके साथ एक छोटी सी सेना थी.

शिवाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन उनकी माँ की छत्रछाया में हुआ. उनकी माँ काफी धार्मिक थीं और इसी वजह से शिवाजी अपनी माँ के लिए समर्पित थे. उनकी माता भगवान शिव की उपासक थीं और शायद इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम शिवाजी रखा था. अपनी माँ के धार्मिक वातावरण के कारण, शिवाजी पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा.

बचपन में शिवाजी को उनकी माता हमेशा महाभारत और रामायण की कथाये सुनाकर उनका मनोरंजन करते थे. लेकिन शिवाजी की मानसिकता उस समय से भिन्न थी, वह उन कहानियों से प्रभावित थे और अपने जीवन के काम में उनका उपयोग करते थे. उनकी मां सिंधखेड़ के लखरूजी जाधव की बेटी थीं. शिवाजी महाराज अपनी माता के ग्रंथों के कारण अपने जीवन के अंत तक हिंदू मूल्यों का बचाव करते रहे हैं.

शिवाजी महाराज ने भी अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपनी माँ से प्राप्त की. जब शिवाजी महाराज छोटे थे, तब उनके पिता ने तुकाबाई के साथ दूसरी शादी की और शिवाजी के साथ, उनकी पहली पत्नी, जीजाबाई को दादोजी कानदेव के पास छोड़ दिया और दादोजी कोणदेव को उनका संरक्षक बना दिया. उसके बाद, वह एक सैन्य अभियान में आदिलशाह के पास कर्नाटक चले गए. दादोजी कोणदेव यह शाहाजी रक्षक था.

दादोजी कानादेव ने शिवाजी को घुड़सवारी, निशानेबाजी और तलवारबाजी की शिक्षा प्रदान की. शिवाजी शुरू से ही एक उत्साही योद्धा के रूप में दिखाई देने लगे, यह देखते हुए उन्हें केवल औपचारिक शिक्षा दी गई. उन्हें औपचारिक शिक्षा में बताई बातों को सुनकर ध्यान में रखना पड़ता था. इस कारण उनकी माँ धार्मिक गुरु और दादोजी उनके शस्त्र विद्या के शिक्षक बने.

उत्साही योद्धा होने के बाद भी शिवाजी ने स्वयं को मजबूत करने के लिए अपने मावल साथियो के साथ अपनी मातृभूमि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए सह्याद्री रेंज की पहाड़ियों पर घूमते थे ताकि वे सैन्य प्रयासों के लिए तैयार हो सकें.

12 वर्ष की आयु में शिवाजी को बैंगलोर ले जाया गया; वहा उनके बड़े भाई संभाजी और सौतेले भाई एकोजी रहते थे, जिन्होंने पहले से ही औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी. शिवाजी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे क्योकि उन्हें बताई गई सभी बाते अच्छी तरह याद रहती थी. शिवाजी महाराज का विवाह उनके बचपन के 12 वें वर्ष में निंबालकर परिवार की सईबाई के साथ हुआ था.

 

शिवाजी महाराज के युद्ध

दादोजी ने सोचा कि शिवाजी भी उनके पिता की तरह उनके स्थान पर डेक्कन सल्तनत के सेनापति बनेंगे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. 15 साल की उम्र में, उन्होंने 1646 में हिंदू राष्ट्र की अपनी स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का फैसला किया था, लेकिन इसके लिए तीन शर्तें निर्धारित करना आवश्यक था. पहला वह जागा शक्तिशाली साम्राज्य के केंद्र से दूर होना चाहिए, दूसरा वह भूमि खेती के लिए अनुपयुक्त होना चाहिए और तीसरा जंगल से घिरा होना चाहिए ताकि छापेमारी युद्ध या गुरिल्ला युद्ध लड़ा जा सके.

यह वर्ष 1646 में शिवाजी के लिए उपयोगी साबित हुआ. जब उन्होंने स्थानीय किसानों और मावलो की मदद से अपनी सेना का निर्माण किया. शिवाजी जानते थे कि किले की स्थापना साम्राज्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण है. इसलिए शिवाजी ने अपनी 15 वर्ष की आयु मे आदिलशाही को रिश्वत देकर वहां के तोरणा, चाकण, और कोंडन नामक किलो के उपर कब्ज़ा कर लिया.

उसके बाद उन्होंने आबाड़िकिरण की मदत से ठाणे, कल्याण और भिवंडी के किलो को मुल्ला अहमद से छीन कर उस पर अपना कब्ज़ा कर लिया और इसी घटनाओ से आदिलशाही में हड़कंप मच गया. इसलिए शिवाजी के पिता को आदिलशाह ने गिरफ्तार कर लिया.

उसके बाद, शिवाजी ने लगभग 7 वर्षों तक आदिलशाह पर सीधा हमला नहीं किया. लेकिन इन सात वर्षों में, शिवाजी ने अपने साम्राज्य और साम्राज्य की सैन्य शक्ति को बढ़ाने और प्रभावशाली देशमुखों को अपने पक्ष में करने में लगा दिया. धीरे-धीरे, शिवाजी ने अपनी सेना को एक विशाल सेना में बदल दिया.

इस सेना में अलग-अलग टुकड़ियों का गठन किया गया था और उनके पास एक प्रमुख सेनापति बनाया गया था. नेताजी पालकर ने पहले घुड़सवार सेना की टुकड़ी में सेना की कमान संभाली थी. पैदल सेना की कमान यशजी कंठ ने संभाल रखी थी. 1657 में, अब तक, 40 किल्ले शिवाजी के पास आ गए थे. इसलिए, शिवाजी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए, वर्ष 1659 में, बीजापुर की बडी साहिबा ने अफ़ज़ल खान को आदेश दिया कि वह शिवाजी पर अपने 10000 सैनिकों के साथ हमला करे.

उस समय अफजल खान अपनी क्रूरता और ताकत के लिए जाना जाता था. यही कारण है कि उसने शिवाजी को युद्ध हेतु भड़काने के लिए बड़े मंदिरों और वहा के लोगों को मारना शुरू कर दिया. लेकिन शिवाजी ने अपनी रणनीति का परिचय देते हुए गुरिल्ला युद्ध हमला जारी रखा और उस समय वे प्रतापगढ़ किले में ही रहे. जो चारों तरफ से घने जंगल से घिरा हुआ था.

अंत में, अफजल खान ने शिवाजी को मिलने के लिए आमंत्रित किया. शिवाजी के वहा पहोचने के बाद अफजल खान ने अपनी मजबूत बाहों में शिवाजी को दबाया. लेकिन शिवाजी को पहले से ही पता था कि वह यह धोका देगा. तब उन्होंने उनके पास छिपाए हुए बाघ शस्त्र से अफजल खान का पेट ही चिर डाला, उसके बाद शिवाजी ने अफजल खान की सेना को करारी मात दी.

बीजापुर का सुल्तान शक्तिशाली अफ़ज़ल खान की मौत से स्तब्ध हो गया. 1659 में, शिवाजी ने रुस्तम जमान को करारी टक्कर दी. जिसमे रुस्तम अपनी जान बचाने के लिए युद्ध भूमि से भाग गया. वर्ष 1660 में आदिलशाह ने अपने सेनापति सिद्दी जौहर को शिवाजी पर हमला करने का आदेश दिया. उस समय शिवाजी पनाला किले में थे, शिवाजी ने सिद्धि जौहर को मिलने का निमंत्रण दिया. क्योंकि उस समय सिद्धि जौहर ने पन्हाला किले के चारों ओर से घेर लिया था. जब सिद्धि जौहर शिवाजी से मिलने गया, तो आदिलशाह को यह खबर दी गई कि उसका सेनापति शिवाजी के साथ मिल चूका है.

इस कारण आदिलशाह ने सिद्धि जोहर से युद्ध किया. इसी बिच एक रात का फायदा उठाकर शिवाजी पनाला किले से निकल गए. उस समय बाजी प्रभु देशपांडे ने आदिलशाह की सेना को संभाला और उसमे बाजी प्रभु देशपांडे की मृत्यु हो गई, जिसके कारण बाजी प्रभु देशपांडे को महाराष्ट्र के इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में जाना जाता है.

उसके बाद, बीजापुर के महाराजा ने शिवाजी को पकड़ने के लिए शाहिस्तान के महाराजा से अनुरोध किया. तब शाहिस्तापुर के महाराज ने अपने मामा के साथ 150,000 सैनिकों की अपनी सेना भेजी, तब उन्होंने शिवाजी के लाल महल पर कब्जा कर लिया.

लेकिन उसके बाद शिवाजी ने अपने 400 सैनिकों के साथ, बारातियो के भेस में प्रवेश द्वार से शाहिस्ता खान के महल में प्रवेश किया और शिवाजी ने शाहिस्ता खान पर भयंकर वार किया. इस वजह से शाहिस्ता खान ने महल की खिड़की से कूदकर अपनी जान बचाई, लेकिन शिवाजी के वार के साथ ही उसके हाथ की तीन उंगलियां कट गईं. उंगलिया तो कट गई साथ ही शाहिस्ता खान की इज्जत भी चली गई.

उसके बाद, 1664 में, शिवाजी ने मुगल व्यापार केंद्र सूरत पर हमला किया और इसे ध्वस्त कर दिया, जिससे औरंगजेब बहुत उग्र हो गया. उसके बाद औरंगजेब ने अपने साठ वर्षीय सेना नायक मिर्जा राजपूत जय सिंह को अपनी 1,50,000 सेना के साथ शिवाजी पर हमला करने के लिए भेजा. इस बार शिवाजी को हार का सामना करना पड़ा और अपने देश को मुआवजे के रूप में 4,00,000 रुपये देने पड़े, और अपने बेटे के साथ आगरा जाना पड़ा.

लेकिन बाद में शिवाजी ने बीमारी का बहाना बनाकर एक अनोखा खेल खेला. जिसमें वह किले से बाहर आये और गोलकोंडा होते हुए रायगढ़ पहुच गए. 1670 तक, शिवाजी ने कई किलो पर अपना अधिकार कर लिया. औरंगज़ेब ने 1671 से 1674 तक शिवाजी को हराने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह हारता ही गया. औरंगजेब के अथक प्रयासों के बावजूद, वह शिवाजी को अपने अधीन करने में असमर्थ था, उसने अपने कई प्रमुख योद्धाओं को भी खो दिया. 1672 में, बीजापुर के राजा आदिलशाह का निधन हो गया.

 

शिवाजी महाराज की राज्य व्यवस्था और उनकी मृत्यु

एक दिन ऐसा भी आया जब गागाभट्ट में 6 जून 16 को शिवाजी महाराज का पुरे रीती रिवाज से राज्यभिषेक किया गया. शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के पहले राजा बन गए. उन्होंने कभी भी जाती भेद नही किया. शिवाजी एक प्रभावशाली योद्धा के साथ एक अच्छे प्रशासक भी थे.

यहां तक ​​कि उनकी सेना में कई मुसलमानों और अन्य जातियों के भी योद्धा थे, शिवाजी महिलाओं का भी सम्मान करते थे. यहां तक ​​कि दुश्मन सेना की महिलाओं को भी उनके राज्य में सम्मान से वापस भेज दिया जाता था.

1680 तक, शिवाजी ने 300 किले और 1,00,000 सैनिक की सेना बना लिया था. लेकिन 1680 में, शिवाजी का स्वास्थ्य बिगड़ गया. तेज बुखार और पेचिस के कारण, शिवाजी महाराज का 52 वर्ष की आयु में 5 अप्रैल 1680 को निधन हो गया.

इसी कारण से, औरंगजेब ने सोचा कि शिवाजी की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य समाप्त हो गया. लेकिन ऐसा सोचना गलत था. उसके बाद, उनके पुत्र संभाजी राजे ने कार्यभार संभाला और बाद में छत्रपति राजाराम ने उनका कार्य जारी रखा. औरंगजेब को 25 वर्षों तक मराठा साम्राज्य से लड़ना पड़ा, जिसके कारण वह अपनी मृत्यु तक पूरी तरह से बर्बाद हो गया था.

Author: Sagar

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Filed Under: जीवनी, रोचक बाते

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