एक लकड़हारे की रोचक कहानी – Ek Lakadhare Ki Kahani
एक लकड़हारा जो प्रतिदिन जंगल में जाकर कुछ लकड़ियाँ इकट्ठा करता था और उन्हें बाजार में बेचकर कुछ पैसे इकट्टा करता था, ताकि वो अपने परिवार का गुजारा कर सके। लकड़हारा प्रतिदिन यहीं काम करता था।
एक दिन लकड़हारा जंगल में गया, उस जंगल में एक बड़ी नदी थी, जो बहुत तेज बह रही थी। उस नदी के किनारे एक बड़ा सा पेड़ था, जिसमें कई सुखी लकड़ियाँ थीं।
वह लकड़हारा उस पेड़ पर अपनी ‘लकड़ी की कुल्हाड़ी’ लेकर चढ़ा और सुखी लकड़ियाँ काटने लगा। लकड़ियाँ काटते-काटते अचानक उसके हाथ से वह कुल्हाड़ी छुट गई और नदी में गिर गई।
उसके बाद वह लकड़हारा पेड़ से नीचे उतर गया और उस कुल्हाड़ी को ढूंढने लगा, लेकिन कुल्हाड़ी नहीं मिली। दरअसल नदी भी बहुत तेज बह रही थी, जिस वजह से कुल्हाड़ी को नदी में ढूंढ पाना भी मुमकीन नहीं था।
अपनी कुल्हाड़ी खोकर लकड़हारा नदी के किनारे बैठ गया और रोने लगा। तब जलदेवता ने उनके रोने की आवाज सुनी तो जलदेवता वहां प्रकट हुए और लकड़हारे से पूछा कि तुम रो क्यों रहे हो?
तब लकड़हारे ने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई, तो जलदेवता को उस पर दया आ गई। उसके बाद जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये। लकड़हारे ने कहा कि यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।
फिर से जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये। लकड़हारे ने फिर से कहा कि यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।
उसके बाद फिर से जलदेवता नदी में गायब हुए और कुछ ही सेकंड में एक लकड़ी की कुल्हाड़ी लेकर वापस आये, उस कुल्हाड़ी को देख कर लकड़हारा बहुत खुश हुआ और उसने कहा कि यही मेरी कुल्हाड़ी है।
लकड़हारे की इमानदारी देख कर जलदेवता बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने लकड़हारे को उसकी लकड़ी की कुल्हाड़ी सहित चांदी और सोने की दोनों ही कुल्हाड़ियाँ भेट दे दी।
इस कहानी से क्या सीख मिलती है
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को हमेशा इमानदारी से ही अपना काम करना चाहिए, क्योंकि ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है।