भारत की न्यायपालिका एक स्वायत्त व्यवस्था है. जिसमे सुप्रीम कोर्ट, हाय कोर्ट, और जिला (सेशन) कोर्ट आते है. नई दिल्ली मे “सुप्रीम कोर्ट” है. जो देश कि “सर्वोच्च न्यायपालिका” है. और देश के प्रत्येंक राज्यों मे “हायकोर्ट” है. तथा देश के प्रत्येंक जिलों मे “सेशन कोर्ट” है, जिसे हम “जिला सत्र न्यायालय” कहते है. जो कि भारतीय संविधान के अनुसार नागरीको के लिये मुलभूत अधिकारों नियमों और कानून व्यवस्था को कायम रखने का काम करता है.
कोई भी मुकदमा हो, उसे सबसे पहले जिला कोर्ट से ही गुजरना पडता है. वहाँ अगर कोई सुनवाई ना हुई तो व्यक्ती को हायकोर्ट का दरवाजा ठकठकाना पडता है. वहाँ से भी काम ना हुआ, तो आखिर मे सुप्रीमकोर्ट ही बचता है, जो कि भारत कि सर्वोच्च न्यायपालिका है.
विशेष विवादों से निपटने के लिये कूछ विशेष आदलतें भी स्थापित की जाती है. ऐसे विवाद जो कि, जिला कोर्ट या हाय कोर्ट मे दर्ज नही हो सकते, वे विशेष अदालतो मे पेश किये जा सकते है.
भारत के न्यायपालिका की सामने एक समान है, फिर वो राजा हो या रंक. देश की कानून व्यवस्था सबको एक समान ही देखती है. भारतीय कानून मे कोई भेदभाव भी नही है, साधारण व्यक्ती से लेकर देश के प्रधान मंत्री तक इसके डायरे मे आ सकते है. इतना अधिकार हमारे देश की न्यायपालिका के पास है, जो पुरी तरह से इसके अधीन है. कोई भी व्यक्ती इस न्यायव्यवस्था से बच नही सकता.
अगर कोई विशेष विषय पर मुकदमा चल रहा हो और सुप्रीम कोर्ट मे उसका रिजल्ट लग जाता है तो वह नया लाॅॅ (नया कानून ) कहलाता है. भारत मे सुप्रीम कोर्ट के उपर कोई अदालत नही है. किसी विशेष मुकदमे मे सिर्फ देश के राष्ट्रपति ही हस्तक्षेप कर सकते है. आज के दौर मे हमारी न्यायव्यवस्था इतनी अच्छी है, देश मे अदालतें बढ चुकीं है. काफी न्यायाधीशों की भी नियुक्तीयाँ हो चुकी है. कानून व्यवस्था आधुनिक हो चुकीं है और उचित नियमों के आधार पर चल रही है.
दोस्तों जीवन एक बार मिला है, मानव इसे सही नियमों और दिशा मे अपने जीवन को यापन कर ले, तो उसके लिये किसी बात की जीवन मे कमी नही है. वह अपने पुरे परिवार के साथ अच्छे से रह सकता है. उसे किसी अदालत या किसी कार्यवाही की जरूरत नही होती. अच्छे आचार और विचार ही साथ रह जाते है.