देश की आजादी का अहम हिस्सा है इन वीरों का जीवन दान: भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु ने “पूर्ण स्वराज्य” का नारा दिया. अन्यथा, आज हम हिंदुस्तान के एक छोटे से टुकड़े के मालिक होते.
देश की आजादी का अहम हिस्सा है इन वीरों का जीवन दान
देश की आजादी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का जीवन दान है. अगर इन तीनों को ब्रिटिश सरकार ने फांशी की सजा ना दी होती तो शायद उस वक्त युवाओं मे अपनी भारत माता की आझादी के लिये जोश ना जाग उठता. उस समय युवाओं के दिल में एक ही बात थी, कि अगर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे युवा भारत माता की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दे सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?
सारे देश के युवक भगतसिंग की क्रांतिकारी बोली बोल रहे थेंं. महात्मा गांधीजी के सत्य और अहिंसा के नारों का जगह जगह विरोध होने लगा था. सभी हिन्दू स्वतंत्रता पाने के लिए जागृत थे.
ब्रिटिश सरकार आधा हिदुस्तान भारतीय नागरीकों को देने तैयार थी. यहाँ तक कहाँ जाता है की स्वंय महात्मा गांधीजी इस बात पर तैयार थे, कि हम आधा हिंदुस्तान पाकर संतुष्ट है. महात्मा गांधीजी अपनी लडाई सत्य और अहिंसा से लढना चाहते थे. ये उनके मुलभूत हथियार थे.
भगतसिंग, चंद्रशेख्र्र आझाद की हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिअशन के अहम हिस्सेदार थे. अंग्रेजों के विरूद्ध “साईमन गो ब्याक” की लडाई मे भगतसिंग लाला लाजपत राय जी के नेतृत्व मे काम कर रहे थे. इस आंदोलन मे लालाजी ने अंग्रेजी हुकुमत के विरुद्ध नारे बाजी की और इसी आंदोलन के दौरान लालाजी शहीद हो गये.
अंग्रेजोंं के विरूद्ध आंदोलन मे लालाजी के शहीद होने से, देश के युवाओं मे क्रांतीकारी की भावना दोगुनी हो गयी. अब पूरे देश के युवा “करो या मरो” की सोच रहे थे. हर कोई आझादी पाना चाहता था. भारत की आझादी मे बच्चोंं से लेकर बुढे भी सामिल होने लगेंं. मानोंं ब्रिटिश सरकार का रौब कम होने लगा.
भगतसिंग अपने क्रांतीकारी साथियों के साथ अंग्रेज सरकार के सामने, अपनी आझादी की मांग को लेकर आगे बढे और उन्होंने “पूर्ण स्वराज्य” की मांग की. देश के बडे बडे क्रांन्तिकारी नेता तक यह न कर पायेंं, जो भगतसिंग और उनके साथियोंं ने किया. भगतसिंग ने “पूर्ण स्वराज्य” का नारा दिया और अंग्रेज सरकार को खदेड़ने की पुरी योजना बनाई. अब अंग्रेजी हुकुमत भगतसिंग के सामने नतमस्तक थी, उन्हें समज मे नही आ रहा था की आखिर क्या करें. महज 23 साल के इन युवकोंं ने इतनी बडी चेतावनी ब्रिटिश हुकुमत को दे दी.
आखिरकर अंग्रेजी हुकुमत भगतसिंग के सामने अपने आप को असुरक्षित समझने लगी और अंग्रेज सरकार ने भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरू को फांशी की सजा सुना दी. फांशी की सजा तो अंग्रेजो ने दे दी, किंतु देश का सारा युवा समुदाय जाग उठा. उन्होंने सोचा की महज 23 वर्ष की आयु मे भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरू देश के लिये बलिदान दे सकते है, तो हम क्यों नही?
दोस्तों, हमारे देश के लोग १५० वर्षों तक ब्रिटिश सरकार के गुलाम रहे. क्रांतिकारियों की कड़ी मेहनत और जुनून था कि हम ब्रिटिश सरकार को दबे पांंव वापस भेजने में सफल रहेंं. न जाने हमारे देश के कितने शहीदों ने अपना खून बहाया और अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजादी दिलाई. हमें गर्व है ऐसे महान वीरों पर जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया. जय हिंद.
Author: Nevindra
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